आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने निर्णय दिया है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) के तहत दायर तलाक याचिका को अपील स्तर पर भी आपसी सहमति से तलाक की धारा 13B में बदला जा सकता है। इसके साथ ही, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 13B(2) के तहत छह महीने का “कूलिंग-ऑफ” पीरियड अनिवार्य नहीं है और उपयुक्त परिस्थितियों में इसे माफ किया जा सकता है।
यह निर्णय न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी और न्यायमूर्ति किरणमयी मंदवा की खंडपीठ ने 27 जून 2025 को C.M.A. No. 651 of 2007 में पारित किया।
पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता-पति ने O.P. No. 444 of 2000 फैमिली कोर्ट (सह-चतुर्थ अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश), विजयवाड़ा के समक्ष हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के अंतर्गत पत्नी से विवाह विच्छेद की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। उन्होंने मानसिक क्रूरता और वर्ष 1997 से पत्नी द्वारा परित्याग का आरोप लगाया था। दोनों का विवाह 29 अगस्त 1996 को हुआ था और एक पुत्री भी है।

फैमिली कोर्ट ने 27 जुलाई 2007 को याचिका खारिज करते हुए कहा कि पति अपने सहकर्मी के साथ कथित अनुचित संबंध के कारण खुद के दोष का लाभ नहीं उठा सकते और उन्होंने पत्नी द्वारा क्रूरता साबित नहीं की।
अपील लंबित रहने के दौरान, दोनों पक्षों ने समझौता कर लिया और आपसी सहमति से तलाक की मांग करते हुए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13B के अंतर्गत I.A. Nos. 1 and 2 of 2024 दायर किए।
न्यायालय की विवेचना
हाईकोर्ट के समक्ष यह प्रश्न था कि क्या धारा 13(1)(ia) के अंतर्गत दायर तलाक याचिका को अपील स्तर पर धारा 13B में बदला जा सकता है और क्या धारा 13B(2) के तहत छह महीने की प्रतीक्षा अवधि अनिवार्य है या दिशा-निर्देश मात्र।
न्यायालय ने निम्नलिखित मामलों का संदर्भ लिया:
- Purnima Rani Kaijam v. Balaji Ankem [2019(4) ALT 162 (DB)],
- K. Omprakash v. K. Nalini [1985 SCC OnLine AP 98],
- R. Sraswathy Devi v. M. Manoharan [2013 Supreme (Online) (KER) 8607],
- Amardeep Singh v. Harveen Kaur [(2017) 8 SCC 746],
- Shilpa Sailesh v. Varun Sreenivasan [(2023) 14 SCC 231].
इन निर्णयों के आधार पर न्यायालय ने माना कि जब पति-पत्नी लंबे समय से अलग रह रहे हों और वैवाहिक जीवन फिर से शुरू करने की कोई संभावना न हो, तो धारा 13B(2) के तहत प्रतीक्षा अवधि को माफ किया जा सकता है।
खंडपीठ ने K. Omprakash मामले से उद्धृत करते हुए कहा:
“धारा 13B(2), निःसंदेह न्यायालय को विवाह बचाने के अंतिम प्रयास का स्मरण कराता है; परंतु जब न्यायालय पूर्ण रूप से संतुष्ट हो जाए कि अब विवाह संबंध को तत्काल समाप्त करना ही उचित है, तब धारा 13B(2) न्यायालय की तलाक देने की शक्ति पर कोई रोक नहीं लगाती।”
साथ ही, Shilpa Sailesh के हवाले से यह भी स्पष्ट किया गया कि जब विवाह पूर्ण रूप से टूट चुका हो, तो प्रक्रियात्मक शर्तों के पालन से पक्षकारों की पीड़ा को लंबा खींचना अनुचित होगा।
अंतिम निर्णय
न्यायालय ने I.A. Nos. 1 and 2 of 2024 को स्वीकार करते हुए कहा:
“यह विवाह पूर्ण रूप से समाप्त हो चुका है और इसे अब और बनाए रखना संभव नहीं है। छह माह की प्रतीक्षा अवधि माफ की जाती है। याचिका को आपसी सहमति से तलाक प्रदान करते हुए स्वीकार किया जाता है।”
न्यायालय ने निम्न आदेश पारित किए:
- I.A. Nos. 1 and 2 of 2024 को स्वीकार किया गया,
- फैमिली कोर्ट का दिनांक 27.07.2007 का निर्णय रद्द किया गया,
- विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13B के तहत तत्काल प्रभाव से भंग किया गया,
- पक्षकारों को लागत नहीं दी गई,
- लंबित सभी अंतरिम याचिकाएं समाप्त की गईं।