सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में संपत्ति विवाद से जुड़े एक आपराधिक मामले को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 (धोखाधड़ी) और धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) के अपराध एक-दूसरे के विपरीत हैं और एक ही मामले में साथ-साथ लागू नहीं हो सकते। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को पलटते हुए कहा कि यह आपराधिक कार्यवाही कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और दीवानी विवाद को निपटाने के लिए प्रतिशोध की भावना से की गई कार्रवाई है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 16 फरवरी, 2013 को हुए एक बिक्री समझौते से शुरू हुआ था। याचिकाकर्ता अरशद नेयाज़ खान ने शिकायतकर्ता मोहम्मद मुस्तफा को रांची में स्थित दो संपत्तियों को 43 लाख रुपये में बेचने का सौदा किया था, जिसके लिए उन्होंने 20 लाख रुपये एडवांस के तौर पर लिए थे।

लगभग आठ साल बाद, 29 जनवरी, 2021 को मोहम्मद मुस्तफा ने एक आपराधिक शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने आरोप लगाया कि खान ने न तो संपत्ति उनके नाम पर की और न ही एडवांस पैसा लौटाया। इस शिकायत के आधार पर दर्ज FIR में खान पर IPC की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी), और 120B (आपराधिक साजिश) के तहत आरोप लगाए गए।
मामला मध्यस्थता केंद्र भी गया, जहाँ खान ने 24 लाख रुपये किश्तों में चुकाने पर सहमति जताई। लेकिन पहली किश्त देने के बाद वह बाकी भुगतान करने में विफल रहे, जिसके कारण उनकी अग्रिम जमानत रद्द कर दी गई। इसके बाद खान ने FIR रद्द करवाने के लिए झारखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हाईकोर्ट ने कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया। इसी फैसले के खिलाफ खान ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने शिकायत में लगाए गए आरोपों और संबंधित धाराओं के कानूनी पहलुओं का गहन विश्लेषण किया।
- धोखाधड़ी (धारा 420) पर: बेंच ने पाया कि शिकायत में यह साबित करने के लिए कोई तथ्य नहीं थे कि आरोपी का इरादा চুক্তি করার সময় থেকেই बेईमानी का था। कोर्ट ने कहा, “सिर्फ वादा पूरा न कर पाना, यह साबित नहीं करता कि शुरू से ही धोखा देने का इरादा था।” अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल यह आरोप लगाना कि बिक्री চুক্তি का पालन नहीं किया गया, धारा 420 के तहत अपराध नहीं बनता।
- आपराधिक विश्वासघात (धारा 406) पर: कोर्ट ने यह भी माना कि इस मामले में आपराधिक विश्वासघात का अपराध भी नहीं बनता। अदालत के अनुसार, शिकायतकर्ता यह नहीं बता पाया कि उसने कौन सी संपत्ति आरोपी को ‘सौंपी’ थी, जिसका बाद में ‘बेईमानी से दुरुपयोग’ किया गया हो।
- दोनों अपराध एक-दूसरे के विपरीत: अदालत ने अपने सबसे महत्वपूर्ण अवलोकन में कहा कि धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के अपराधों में मौलिक अंतर है। कोर्ट ने अपने एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा, “धोखाधड़ी के लिए, गलत बयानी करते समय ही आपराधिक इरादा होना आवश्यक है, यानी शुरुआत से ही। जबकि आपराधिक विश्वासघात में, संपत्ति कानूनी रूप से सौंपी जाती है और बाद में उसका बेईमानी से दुरुपयोग किया जाता है। इसलिए, ये दोनों अपराध एक ही मामले में एक साथ मौजूद नहीं हो सकते।”
- देरी और दुर्भावनापूर्ण इरादा: बेंच ने शिकायत दर्ज कराने में हुई लगभग आठ साल की देरी पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि यह विवाद मूल रूप से दीवानी प्रकृति का है और शिकायतकर्ता के पास दीवानी मुकदमा दायर करने का विकल्प था, जिसका उसने इस्तेमाल नहीं किया। कोर्ट ने आपराधिक कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए कहा, “आपराधिक कानून को व्यक्तिगत स्कोर और दुश्मनी निपटाने का मंच नहीं बनना चाहिए।”
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल मामले में दिए गए सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष निकाला कि यह आपराधिक कार्यवाही दुर्भावनापूर्ण इरादे से शुरू की गई थी। अदालत ने कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोप पहली नजर में कोई अपराध नहीं बनाते हैं।
अंत में, बेंच ने अपील स्वीकार करते हुए झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और शिकायत केस संख्या 619/2021 और FIR संख्या 18/2021 समेत सभी संबंधित कार्यवाहियों को समाप्त कर दिया।