सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है कि यदि कोई विकास प्राधिकरण तय समय पर फ्लैट का कब्जा देने में विफल रहता है, तो वह खरीदार को जमा की गई राशि ब्याज सहित लौटाने का पात्र है, लेकिन वह खरीदार द्वारा फ्लैट खरीदने के लिए लिए गए बैंक लोन पर ब्याज की भरपाई के लिए बाध्य नहीं है।
यह फैसला न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रसन्न बी. वराले की पीठ ने ग्रेटर मोहाली एरिया डिवेलपमेंट अथॉरिटी बनाम अनुपम गर्ग एवं अन्य [सिविल अपील @ विशेष अनुमति याचिका (नागरिक) सं. 27847-27848/2019] में सुनाया।
पृष्ठभूमि
साल 2011 में ग्रेटर मोहाली एरिया डिवेलपमेंट अथॉरिटी (GMADA) ने मोहाली के सेक्टर-88 में ‘पुरब प्रीमियम अपार्टमेंट्स’ नाम से एक आवासीय योजना शुरू की थी। याचिकाकर्ता अनुपम गर्ग ने एक 2-बीएचके + सर्वेंट रूम फ्लैट के लिए ₹5.5 लाख अग्रिम राशि के रूप में जमा कर आवेदन किया। 19 मार्च 2012 को ड्रॉ के माध्यम से उन्हें फ्लैट आवंटित हुआ और 21 मई 2012 को ‘लेटर ऑफ इंटेंट’ (LOI) जारी किया गया, जिसमें यह उल्लेख था कि 36 महीने में फ्लैट का कब्जा दिया जाएगा।
21 मई 2015 तक कब्जा नहीं मिला। जब याचिकाकर्ता ने साइट का निरीक्षण किया, तो पाया कि निर्माण कार्य अधूरा है। उन्होंने योजना से बाहर निकलने और धन वापसी का अनुरोध किया।
बाद में, जून 2016 में GMADA ने कब्जा पत्र जारी किया, लेकिन याचिकाकर्ता को फ्लैट में कई बदलाव और सुविधाओं में कटौती मिली। उन्होंने राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, पंजाब में उपभोक्ता शिकायत दायर की।
दलीलें व आयोगों के आदेश
राज्य आयोग ने पाया कि:
- GMADA फ्लैट का निर्माण निर्धारित समय में पूरा नहीं कर सका।
- याचिकाकर्ता को जमा राशि ₹50,46,250/- 8% वार्षिक चक्रवृद्धि ब्याज सहित लौटाई जाए, जैसा कि LOI के क्लॉज 3(II) में उल्लेखित है।
- मानसिक पीड़ा के लिए ₹60,000 और वाद व्यय के लिए ₹30,000 अलग से दिए जाएं।
- इसके अतिरिक्त, GMADA को वह ब्याज भी लौटाने का आदेश दिया गया जो याचिकाकर्ता ने फ्लैट खरीदने हेतु बैंक से लिए गए लोन पर अदा किया था।
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने उक्त आदेशों की पुष्टि की और GMADA पर ₹20,000 का लागत भी लगाया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने केवल उस हिस्से की वैधता पर विचार किया, जिसमें GMADA को खरीदार द्वारा बैंक को चुकाए गए लोन पर ब्याज का भुगतान करने को कहा गया था।
बैंगलोर डिवेलपमेंट अथॉरिटी बनाम सिंडिकेट बैंक (2007) 6 SCC 711 का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि तय समय या एक उचित समय में फ्लैट का कब्जा नहीं दिया जाता, तो खरीदार को जमा राशि ब्याज सहित लौटाना होगा और आवश्यकता अनुसार मुआवजा भी मिल सकता है।
हालांकि कोर्ट ने यह स्पष्ट किया:
“खरीदार फ्लैट खरीदने के लिए अपनी बचत, लोन या किसी अन्य वैध माध्यम से धन जुटाता है, यह बात डिवेलपर के लिए अप्रासंगिक है। खरीदार उपभोक्ता है और डिवेलपर सेवा प्रदाता। इसी दायरे में संबंध सीमित रहता है।”
DLF होम्स पंचकूला (P) लिमिटेड बनाम डी.एस. धांडा (2020) 16 SCC 318 का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि उपभोक्ता आयोग क्षतिपूर्ति का निर्धारण तथ्यों के अनुसार करे, न कि किसी सामान्य नियम के तहत। फ्लैट खरीदार द्वारा लिए गए बैंक लोन पर ब्याज की अदायगी GMADA पर डालना उचित नहीं है।
कोर्ट ने यह भी कहा:
“इस मामले में निवेश पर 8% ब्याज ही वह क्षतिपूर्ति है जो खरीदार को उसके निवेश से वंचित रहने के लिए दी गई है। इससे अतिरिक्त कोई ब्याज GMADA को अदा करने की आवश्यकता नहीं है।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए GMADA को याचिकाकर्ता द्वारा लिए गए लोन पर ब्याज चुकाने की बाध्यता से मुक्त किया। आयोगों द्वारा आदेशित 8% ब्याज, मानसिक पीड़ा और वाद व्यय के लिए मुआवजा यथावत रखा गया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि GMADA द्वारा पूर्व में जमा की गई राशि में कोई और राशि जोड़ने की आवश्यकता नहीं है और वह राशि याचिकाकर्ताओं को वितरित की जाए।