इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने यह स्पष्ट किया है कि विभागीय जांच की विधिक शुरुआत तभी मानी जाएगी जब कर्मचारी को चार्जशीट (आरोपपत्र) जारी की जाए, न कि केवल जांच आरंभ करने का आदेश पारित कर देने से। यह निर्णय न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान ने सेवानिवृत्त कनिष्ठ अभियंता नरेंद्र सिंह द्वारा दायर दो याचिकाओं (Writ-A No. 4265 of 2024 और Writ-A No. 6945 of 2024) में सुनाया। याचिकाओं में सेवानिवृत्ति के वर्षों बाद की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को चुनौती दी गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
नरेंद्र सिंह की नियुक्ति 7 जनवरी 1987 को जूनियर इंजीनियर (सिविल) के पद पर हुई थी और वह 31 मार्च 2015 को सेवानिवृत्त हुए। वर्ष 2010–11 के कार्यों से जुड़ी शिकायतों के आधार पर विभाग ने 19 जनवरी 2016 को सिविल सेवा विनियमावली की विनियम 351-A के अंतर्गत जांच आरंभ करने का आदेश पारित किया। हालांकि, चार्जशीट बहुत बाद में, 16 जुलाई 2024 को जारी की गई — जो सेवानिवृत्ति के नौ वर्ष बाद की गई कार्रवाई थी।

याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्तागण मनीष मिश्रा एवं सर्वेश कुमार सक्सेना ने दलील दी कि विनियम 351-A के अंतर्गत निर्धारित समय-सीमा का उल्लंघन हुआ है और इस कारण जांच अमान्य है। उन्होंने कहा कि विभागीय कार्यवाही तभी मानी जाती है जब चार्जशीट जारी हो — और इस मामले में यह चार वर्ष की सीमा से परे है।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निम्नलिखित निर्णयों का हवाला दिया:
- यूनियन ऑफ इंडिया बनाम के.वी. जंकीरमन, (1991) 4 SCC 109
- यूको बैंक बनाम राजिंदर लाल कपूर, (2007) 6 SCC 694
- कोल इंडिया लिमिटेड बनाम सरोज मिश्रा, (2007) 9 SCC 625
- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम नवीन कुमार सिन्हा, 2024 LawSuit (SC) 1018
इन फैसलों में यह सिद्ध किया गया कि विभागीय कार्यवाही की शुरुआत चार्जशीट जारी होने से मानी जाती है।
प्रतिवादी का पक्ष
राज्य सरकार की ओर से अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता पंकज पटेल ने कहा कि जांच की शुरुआत 19 जनवरी 2016 को हुई जब सक्षम प्राधिकारी ने आदेश पारित किया। उन्होंने DDA बनाम एच.सी. खुराना (1993) 3 SCC 196 तथा यूनियन ऑफ इंडिया बनाम केवल कुमार (1993) 3 SCC 204 पर भरोसा किया।
हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि:
“अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रारंभ करने का निर्णय चार्जशीट जारी करने के पश्चात नहीं हो सकता, क्योंकि चार्जशीट जारी करना जांच प्रारंभ करने के निर्णय का परिणाम होता है। आरोपों की जांच के लिए चार्जशीट तैयार करना पहला कदम होता है।”
न्यायालय की टिप्पणी
न्यायालय ने दो टूक कहा:
“विभागीय जांच तभी मानी जाएगी जब आरोपित कर्मचारी को आरोप पत्र (चार्जशीट) जारी किया जाए और उससे जवाब माँगा जाए।”
न्यायमूर्ति चौहान ने यह भी जोड़ा कि विनियम 351-A का प्रयोग उन्हीं घटनाओं पर किया जा सकता है जो सेवानिवृत्ति के चार वर्षों के भीतर की हों। उन्होंने कहा:
“दिनांक 19.01.2016 का आदेश एवं 16.07.2024 की चार्जशीट स्पष्ट रूप से अवैध, मनमानी, असंगत तथा CSR के विनियम 351-A के विपरीत हैं।”
विलंब पर चिंता जताते हुए न्यायालय ने बनी सिंह बनाम मध्यप्रदेश राज्य में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी उद्धृत की:
“चार्ज मेमो जारी करने में अत्यधिक विलंब के लिए कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है और हम यह मानते हैं कि अब इस अवस्था में विभागीय जांच को आगे बढ़ाना अन्यायपूर्ण होगा।”
अंतिम निर्णय
हाईकोर्ट ने 19 जनवरी 2016 के आदेश एवं 16 जुलाई 2024 की चार्जशीट — दोनों को रद्द कर दिया। न्यायालय ने writ of certiorari जारी कर कार्यवाही को निरस्त किया तथा writ of mandamus जारी करते हुए निर्देश दिया कि सभी लंबित सेवानिवृत्ति लाभ, पेंशन सहित, 7% वार्षिक ब्याज दर पर दो माह के भीतर अदा किए जाएं। अनुपालन न होने की स्थिति में ब्याज दर 10% प्रति वर्ष की दर से देय होगी।
न्यायालय ने निष्कर्ष में कहा:
“चूँकि विभागीय जांच की शुरुआत चार्जशीट जारी होने की तिथि से मानी जाती है, इसलिए वर्तमान मामले में अत्यधिक विलंब समस्त कार्यवाही के उद्देश्य को ही निरस्त कर देता है।”
प्रकरण:
Writ-A No. 4265 of 2024 एवं Writ-A No. 6945 of 2024; नरेंद्र सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य