दिल्ली दंगों की साजिश से जुड़े मामले में दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में शरजील इमाम की जमानत याचिका का पुरजोर विरोध किया। जांच एजेंसी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एस.वी. राजू ने शीर्ष अदालत में दलील दी कि आरोपी और उनके सहयोगियों का मुख्य उद्देश्य हिंसक माध्यमों से देश में “सत्ता परिवर्तन” (Regime Change) करना था।
सुनवाई के दौरान ASG राजू ने कथित आतंकी गतिविधियों में शिक्षित व्यक्तियों की भागीदारी को लेकर गंभीर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि जमीनी स्तर के आतंकियों की तुलना में पढ़े-लिखे “बुद्धिजीवी” (Intellectuals) समाज के लिए अधिक बड़ा खतरा हैं।
“पढ़े-लिखे आतंकी ज्यादा खतरनाक”
ASG राजू ने कोर्ट के समक्ष कहा, “जब बुद्धिजीवी आतंकवादी बन जाते हैं, तो वे जमीनी स्तर के आतंकवादियों से कहीं अधिक हानिकारक होते हैं। वे बुद्धिजीवी जिन्होंने सरकारी सहायता से डिग्रियां हासिल कीं, जो सरकारी फंड का उपयोग कर डॉक्टर बने और फिर उस शिक्षा का इस्तेमाल नापाक गतिविधियों के लिए किया — वे समाज के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक हैं।”
यह दलील शरजील इमाम की भूमिका और हिंसा भड़काने में उनकी कथित संलिप्तता के संदर्भ में दी गई। ASG ने यह भी तर्क दिया कि निचली अदालत में मुकदमे (Trial) में हो रही देरी, जिसे अक्सर जमानत का आधार बनाया जाता है, वास्तव में खुद आरोपियों के कारण हो रही है।
भड़काऊ भाषण और असम को अलग करने की साजिश
दिल्ली पुलिस ने अपने दावों को पुख्ता करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में शरजील इमाम के भाषणों की रिकॉर्डिंग भी चलाई। ASG ने कहा कि ये भाषण पूरी तरह से भड़काऊ थे और एक विशेष समुदाय को उकसाने के लिए दिए गए थे।
भाषणों का विवरण देते हुए ASG राजू ने कहा, “इस साजिश का मुख्य सदस्य क्या कह रहा है? वह इसे सिर्फ प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक ‘हिंसक प्रदर्शन’ कहता है। वह असम को भारत से अलग करने की बात करता है। वह ‘चिकन नेक’ (Chicken Neck) का जिक्र करता है — वह 16 किमी का गलियारा जो असम को शेष भारत से जोड़ता है।”
अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि इमाम ने संवेदनशील मुद्दों का हवाला देकर मुसलमानों को भड़काने की कोशिश की। ASG ने कहा, “वह बाबरी मस्जिद की बात करता है, तीन तलाक का जिक्र करता है और यहां तक कि अदालत की अवमानना करते हुए कहता है कि ‘कोर्ट की नानी याद करा देंगे।’ इन सब बातों से स्पष्ट है कि इनका अंतिम लक्ष्य सत्ता परिवर्तन था।”
मामले की पृष्ठभूमि
शरजील इमाम, जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर और अन्य पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज है। इन पर फरवरी 2020 में हुए उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों का “मास्टरमाइंड” होने का आरोप है। इन दंगों में 53 लोगों की जान गई थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे।
यह हिंसा नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरोध प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में भड़की थी।
इससे पहले, दिल्ली हाईकोर्ट ने शरजील इमाम और उमर खालिद समेत नौ आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा था कि नागरिकों द्वारा प्रदर्शन के नाम पर “साजिश के तहत हिंसा” की अनुमति नहीं दी जा सकती। हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
मामले की सुनवाई अभी सुप्रीम कोर्ट में जारी है।




