दिल्ली सरकार राजधानी में पुराने पेट्रोल और डीजल वाहनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने पर विचार कर रही है। गुरुवार को वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि सरकार ने परिवहन और पर्यावरण विभागों को इस नीति के कार्यान्वयन, प्रभाव और व्यवहारिक चुनौतियों की विस्तृत समीक्षा करने को कहा है।
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने इस पहल की पुष्टि की। उन्होंने कहा, “पर्यावरण और परिवहन विभाग स्वतंत्र रूप से यह अध्ययन कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का जनता पर क्या असर पड़ा है और इसका वायु गुणवत्ता पर क्या प्रभाव पड़ा है। दोनों रिपोर्टें मिलने के बाद सरकार यह तय करेगी कि कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाए या नहीं।”
यह कदम जुलाई में शुरू की गई उस सख्त कार्रवाई के कुछ हफ्तों बाद उठाया गया है, जिसमें 15 साल से पुराने पेट्रोल और 10 साल से पुराने डीजल वाहनों पर रोक लगाई गई थी। सरकार ने इन गाड़ियों को ईंधन देने पर भी पाबंदी लगा दी थी, लेकिन भारी विरोध और “जमीनी स्तर पर गंभीर संचालनात्मक चुनौतियों” के चलते यह अभियान कुछ ही दिनों में रोक दिया गया।

इस बीच, उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के 2018 के निर्देश की समीक्षा करने की अपील की। उन्होंने लिखा, “दिल्ली में अवैध माने जाने वाले वाहन अगर अन्य शहरों में वैध हैं तो यह समानता के अधिकार के खिलाफ है।” उन्होंने पूरे एनसीआर में वाहनों की आयु-आधारित नीति को एक समान और न्यायसंगत बनाने की मांग की।
सरकार द्वारा कराए जा रहे इस ताज़ा अध्ययन में सिर्फ पुराने वाहनों पर रोक का मूल्यांकन नहीं होगा, बल्कि जनता, वाहन मालिकों, पर्यावरण विशेषज्ञों और अन्य हितधारकों से मिली प्रतिक्रिया को भी शामिल किया जाएगा। इसके अलावा पिछले पांच महीनों में दिल्ली सरकार द्वारा उठाए गए प्रदूषण नियंत्रण उपायों और उनके नतीजों की भी समीक्षा की जाएगी।
पर्यावरण मंत्री सिरसा ने पहले ही वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को पत्र लिखकर कहा था कि दिल्ली की वर्तमान सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था और बुनियादी ढांचा इतनी बड़ी रोक को संभालने में सक्षम नहीं है। उन्होंने तर्क दिया था कि यह प्रतिबंध विशेष रूप से निम्न-आय वर्ग के लोगों और पुराने वाहनों पर निर्भर छोटे कारोबारियों को भारी नुकसान पहुंचा रहा है।
परिवहन और पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट आने के बाद ही दिल्ली कैबिनेट यह तय करेगी कि सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जाए या नहीं।
जैसे-जैसे दिल्ली को वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति और जनता के प्रतिरोध के बीच संतुलन साधने की चुनौती बढ़ती जा रही है, सरकार का अगला कानूनी कदम देश के अन्य महानगरों के लिए एक मिसाल बन सकता है।