दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को नितीश कटारा हत्याकांड के दोषी विकास यादव की फरलो (अल्पावधि जेल अवकाश) की मांग वाली याचिका पर दिल्ली सरकार से जवाब तलब किया है।
न्यायमूर्ति रवींद्र दुडेजा ने दिल्ली सरकार, जेल प्रशासन, नितीश कटारा की मां नीलम कटारा और गवाह अजय कटारा को नोटिस जारी कर अगली सुनवाई से पहले अपनी स्थिति रिपोर्ट या जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 27 नवंबर के लिए तय की है।
विकास यादव ने 29 अक्टूबर को जेल प्रशासन द्वारा उसकी फरलो अर्जी खारिज किए जाने के आदेश को चुनौती दी है। वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता ने सामाजिक संबंध बनाए रखने के उद्देश्य से 21 दिनों की फरलो मांगी थी क्योंकि हाल ही में उसकी शादी हुई है।
उन्होंने दलील दी कि फरलो के लिए दिल्ली जेल नियमों के तहत सभी मानक पूरे किए गए थे, फिर भी जेल प्रशासन ने बिना सोच-विचार और बिना किसी ठोस कारण के आवेदन खारिज कर दिया। पाहवा ने कहा कि केवल अपराध की प्रकृति या सजा की अवधि के आधार पर फरलो से इनकार नहीं किया जा सकता।
दिल्ली सरकार के वकील ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा।
जेल प्रशासन ने फरलो आवेदन को यह कहते हुए खारिज किया कि विकास यादव का जेल में आचरण “असंतोषजनक” पाया गया है। साथ ही पीड़ित पक्ष की ओर से यह आशंका भी जताई गई कि यदि उसे छोड़ा गया तो वह विदेश भाग सकता है, कानून-व्यवस्था में बाधा डाल सकता है और पीड़ित परिवार को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकता है।
फरलो जेल से अस्थायी रिहाई होती है, यह सजा की माफी या निलंबन नहीं होती। आमतौर पर यह सुविधा लंबी सजा काट रहे कैदियों को दी जाती है ताकि वे परिवार और समाज से संपर्क बनाए रख सकें।
इससे पहले 9 सितंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने विकास यादव की अंतरिम जमानत बढ़ाने की मांग को खारिज कर दिया था। उसे सुप्रीम कोर्ट ने अपनी बीमार मां की देखभाल के लिए अंतरिम जमानत दी थी। बाद में उसने शादी का हवाला देते हुए जमानत अवधि बढ़ाने की मांग की थी।
विकास यादव उत्तर प्रदेश के नेता डी.पी. यादव का बेटा है। उसका चचेरा भाई विशाल यादव भी इस हत्याकांड में दोषी ठहराया गया था। दोनों पर आरोप था कि उन्होंने 16-17 फरवरी 2002 की रात एक शादी समारोह से नितीश कटारा का अपहरण कर उसकी हत्या कर दी, क्योंकि नितीश का संबंध विकास की बहन भारती यादव से था और परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था।
दिल्ली हाईकोर्ट ने दोनों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए 30 साल की बिना रियायत की सजा तय की थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2016 को संशोधन करते हुए दोनों को 25 साल की बिना रियायत सजा सुनाई थी।
तीसरे सह-दोषी सुखदेव पहलवान को 20 साल की सजा दी गई थी। उसने इस साल मार्च में अपनी सजा पूरी की और जुलाई में रिहा हुआ, लेकिन कुछ ही समय बाद सड़क दुर्घटना में उसकी मौत हो गई।




