वैवाहिक मुकदमों के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए, दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ (Full Bench) ने स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 13B(1) के तहत आपसी सहमति से तलाक की याचिका दायर करने के लिए अनिवार्य ‘एक साल की अलगाव अवधि’ (Separation Period) में छूट दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि ‘असाधारण कठिनाई’ (Exceptional Hardship) या ‘असाधारण दुराचार’ (Exceptional Depravity) के मामलों में यह छूट मान्य होगी।
इसके अलावा, पीठ ने यह भी निर्धारित किया कि एक बार जब अदालत एक साल की अलगाव अवधि और छह महीने की कूलिंग-ऑफ अवधि (Cooling-off Period) को माफ कर देती है, तो तलाक की डिक्री को स्थगित करने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। ऐसी स्थिति में तलाक की डिक्री तत्काल प्रभाव से पारित की जा सकती है।
यह निर्णय न्यायमूर्ति नवीन चावला, न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी और न्यायमूर्ति रेणु भटनागर की पूर्ण पीठ ने दिया। यह मामला MAT.APP.(F.C.) 111/2025 से उत्पन्न एक रेफरेंस पर आधारित था, जिसका उद्देश्य धारा 13B के तहत निर्धारित समय-सीमा की अनिवार्यता पर कानूनी स्थिति को स्पष्ट करना था, विशेष रूप से संकल्प सिंह बनाम प्रार्थना चंद्रा (2013) के फैसले के आलोक में।
क्या था कानूनी रेफरेंस?
यह रेफरेंस 22 अप्रैल, 2025 के एक आदेश से उत्पन्न हुआ था, जिसमें एक डिवीजन बेंच ने यह महसूस किया कि संकल्प सिंह मामले में अपनाई गई व्याख्या पर पुनर्विचार की आवश्यकता हो सकती है। पूर्ण पीठ के समक्ष कानून के दो विशिष्ट प्रश्न भेजे गए थे:
- क्या हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13B(1) के तहत तलाक की याचिका पक्षकारों द्वारा एक वर्ष की अलगाव अवधि पूरी करने से पहले दायर की जा सकती है?
- यदि हाँ, तो क्या पहली और दूसरी मोशन (धारा 13B(2)) के बीच की छह महीने की अवधि को माफ किया जा सकता है, भले ही छूट की प्रार्थना के समय पक्षकार एक वर्ष से अधिक समय से अलग न रह रहे हों?
कानूनी प्रावधानों का विश्लेषण
कोर्ट ने धारा 13B(1) का विश्लेषण किया, जो इस आधार पर आपसी सहमति से तलाक की अनुमति देती है कि पक्षकार एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं। पीठ ने नोट किया कि यह धारा “इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन” (Subject to the provisions of this Act) वाक्यांश से शुरू होती है, जिसका अर्थ है कि यह धारा 14 सहित अन्य प्रावधानों के अधीनस्थ है।
धारा 14(1) आम तौर पर अदालतों को शादी के एक साल के भीतर तलाक की याचिका पर विचार करने से रोकती है, लेकिन इसमें एक परंतुक (Proviso) शामिल है जो अदालत को “याचिकाकर्ता के लिए असाधारण कठिनाई या प्रतिवादी की ओर से असाधारण दुराचार” के मामलों में समय से पहले याचिका पेश करने की अनुमति देता है।
पुराने फैसलों को पलटा
पूर्ण पीठ ने पाया कि दिल्ली हाईकोर्ट की एकल पीठों (उर्वशी सिबल, मोहिन सैली, और सनी मामले) ने पहले यह माना था कि धारा 13B अपने आप में एक पूर्ण कोड है और धारा 14(1) का परंतुक इस पर लागू नहीं होता है। पूर्ण पीठ ने इन फैसलों को खारिज करते हुए कहा:
“हम यह मानते हैं कि संकल्प सिंह मामले में इस न्यायालय की डिवीजन बेंच के निर्णय के आलोक में, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13B एक पूर्ण कोड नहीं है; और इसके विपरीत दृष्टिकोण रखने वाले विभिन्न एकल पीठों के निर्णयों को एतद्द्वारा खारिज (Overruled) किया जाता है।”
सांविधिक समय-सीमा में छूट
फैसला लिखते हुए न्यायमूर्ति भंभानी ने जोर देकर कहा कि सहमति देने वाले वयस्कों को टूटी हुई शादी में रहने के लिए मजबूर करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने टिप्पणी की:
“क्या आपसी सहमति से तलाक को रोकने के लिए अदालत बाध्य है, जो अनिच्छुक पक्षकारों को वैवाहिक आनंद में नहीं, बल्कि वैवाहिक खाई (Matrimonial Abyss) में धकेल दे?”
1. एक साल की अलगाव अवधि में छूट
कोर्ट ने संकल्प सिंह मामले के इस दृष्टिकोण की पुष्टि की कि धारा 14(1) के परंतुक का उपयोग करके धारा 13B(1) के तहत एक साल की अवधि में छूट दी जा सकती है। यह छूट विवेकाधीन है और यह अदालत की संतुष्टि पर निर्भर करती है कि मामला असाधारण कठिनाई या दुराचार का है।
2. तत्काल तलाक की डिक्री
हालांकि, पूर्ण पीठ ने संकल्प सिंह मामले के उस दृष्टिकोण से असहमति जताई जिसमें कहा गया था कि तलाक की डिक्री को तब तक के लिए टाल दिया जाना चाहिए जब तक कि एक साल की अवधि पूरी न हो जाए। कोर्ट ने तर्क दिया कि असाधारण परिस्थितियों को पाने के बाद भी अनिच्छुक व्यक्तियों को शादी के बंधन में बांधे रखना एक “विरोधाभासी स्थिति” होगी।
पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि अदालत आश्वस्त है कि तलाक दिया जाना चाहिए, तो “हमें तलाक की डिक्री पारित करने को एक साल की अलगाव अवधि पूरी होने तक रोकने का कोई औचित्य नजर नहीं आता।”
3. स्वतंत्र छूट (Independent Waivers)
फैसले में स्पष्ट किया गया कि एक साल की अलगाव अवधि (धारा 13B(1)) और छह महीने की कूलिंग-ऑफ अवधि (धारा 13B(2)) में छूट अलग-अलग पहलू हैं। एक में छूट देने से दूसरे में छूट देने पर कोई रोक नहीं है।
मुख्य निष्कर्ष
पूर्ण पीठ ने अपने निष्कर्षों को इस प्रकार संक्षेपित किया:
- धारा 13B(1) के तहत एक वर्ष की वैधानिक अवधि एक पूर्व-शर्त है, लेकिन धारा 14(1) के परंतुक को लागू करके इसमें छूट दी जा सकती है।
- यह छूट केवल मांगने पर नहीं दी जाएगी, बल्कि “असाधारण कठिनाई” या “असाधारण दुराचार” की संतुष्टि होने पर ही दी जाएगी।
- एक वर्ष की अवधि में छूट देने का मतलब यह नहीं है कि धारा 13B(2) के तहत छह महीने की कूलिंग-ऑफ अवधि में छूट नहीं दी जा सकती।
- अदालतों के लिए तलाक की डिक्री के प्रभाव को टालना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है; इसे तत्काल प्रभाव से लागू किया जा सकता है।
- छूट देने की ऐसी शक्ति का प्रयोग फैमिली कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों द्वारा किया जा सकता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजशेखर राव ने एमिकस क्यूरी (Amicus Curiae) के रूप में पक्ष रखा, जिन्हे सुश्री आशना चावला, श्री अजय सभरवाल, श्री वामिक वसीम नरगल और श्री जाहिद लईक अहमद, अधिवक्ताओं ने सहायता प्रदान की। प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता श्री सौरभ कंसल उपस्थित हुए।

