दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि किसी कंपनी के खिलाफ इन्सॉल्वेंसी (दिवालियापन) की कार्यवाही शुरू हो चुकी है और उसका खाता ‘अकाउंट ब्लॉक्ड’ (Account Blocked) होने के कारण चेक बाउंस होता है, तो इसे निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि एक बार अंतरिम समाधान पेशेवर (IRP) या लिक्विडेटर नियुक्त हो जाने के बाद, निदेशकों का बैंक खातों पर कोई नियंत्रण नहीं रहता है।
इस आधार पर हाईकोर्ट ने एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के पूर्व निदेशकों के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह निर्णय फरहाद सूरी और धीरेन नवलखा (याचिकाकर्ता) द्वारा दायर याचिकाओं पर आया है, जिसमें उन्होंने जनवरी 2021 में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किए गए समनिंग आदेशों को चुनौती दी थी।
शिकायतकर्ता प्रवीण चौधरी और जितेंद्र चौधरी (प्रतिवादी) ने मैसर्स सुमेरु प्रोसेसर्स प्रा. लि. और उसके निदेशकों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। उनका आरोप था कि उन्होंने आरोपियों को मैत्रीपूर्ण ऋण (friendly loan) दिया था और किराए पर जगह उपलब्ध कराई थी। देनदारी चुकाने के लिए, आरोपियों ने 7 सितंबर, 2020 को 75 लाख, 24 लाख और 1.10 करोड़ रुपये के तीन चेक जारी किए।
जब इन चेक को बैंक में लगाया गया, तो वे 5 अक्टूबर, 2020 को “अकाउंट ब्लॉक्ड” टिप्पणी के साथ वापस आ गए। इसके बाद, शिकायतकर्ताओं ने कानूनी नोटिस भेजा और धारा 138 के तहत मामला दर्ज कराया, जिसके बाद निचली अदालत ने याचिकाकर्ताओं को समन जारी किया था।
पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि समनिंग आदेश कानूनी रूप से अस्थिर थे। उनका कहना था कि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) ने 15 अप्रैल, 2019 को ही कंपनी के खिलाफ कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रेजोल्यूशन प्रोसेस (CIRP) शुरू कर दिया था और बाद में 3 दिसंबर, 2019 को एक लिक्विडेटर नियुक्त किया गया था।
दलील दी गई कि अप्रैल 2019 से सभी प्रतिभूतियां, चेक बुक और बैंक खाते IRP और बाद में लिक्विडेटर के नियंत्रण में चले गए थे। इसलिए, जिस तारीख (7 सितंबर, 2020) को चेक जारी किए गए माने जा रहे हैं, उस समय याचिकाकर्ताओं का खातों पर कोई नियंत्रण नहीं था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि “अकाउंट ब्लॉक्ड” का रिमार्क धारा 138 के दायरे में नहीं आता है, जो विशेष रूप से “फंड की कमी” (insufficiency of funds) के लिए दंडित करता है।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने याचिका का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि याचिकाकर्ताओं ने NCLT की कार्यवाही को छिपाया है, जो धोखाधड़ी के समान है। उन्होंने तर्क दिया कि निदेशकों ने कंपनी और अपनी व्यक्तिगत क्षमता दोनों में चेक जारी किए थे, इसलिए उन्हें धन के दुरुपयोग के लिए उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए।
कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
मामले की सुनवाई कर रहीं जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि मुख्य कानूनी मुद्दा यह है कि क्या NCLT कार्यवाही के बाद खाता ब्लॉक होने के कारण चेक बाउंस होने पर धारा 138 का मुकदमा चल सकता है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट के पी. मोहनराज बनाम शाह ब्रदर्स इस्पात प्रा. लि. के फैसले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने नोट किया कि हालांकि इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत रोक (moratorium) आमतौर पर कॉर्पोरेट देनदार पर लागू होती है, लेकिन इस मामले के तथ्यों में खातों पर “नियंत्रण” की जांच आवश्यक थी।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा:
“इस प्रकार, अप्रैल 2019 से याचिकाकर्ताओं का उक्त खाते पर कोई अधिकार, नियंत्रण या उसे संचालित करने का अधिकार नहीं रह गया था। शक्तियों के छिन जाने के बाद, सितंबर 2020 में जारी किया गया कोई भी चेक याचिकाकर्ताओं द्वारा वैध रूप से जारी नहीं किया जा सकता था।”
हाईकोर्ट ने गणेश चंद्र बमराना बनाम रुक्मिणी गुप्ता के मामले पर भरोसा जताया, जिसमें यह माना गया था कि मोराटोरियम के बाद, चेक बाउंस होने के लिए आरोपी व्यक्तियों को परोक्ष रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि वे कंपनी के बैंक खातों पर नियंत्रण खो देते हैं।
“अकाउंट ब्लॉक्ड” रिमार्क के मुद्दे पर, कोर्ट ने धारा 138 के आवश्यक तत्वों का विश्लेषण किया। कोर्ट ने कहा:
“धारा 138 एनआई एक्ट के तहत अपराध गठित करने के लिए, केवल चेक जारी करना पर्याप्त नहीं है; यह तभी दंडनीय होता है जब चेक ‘फंड की अपर्याप्तता’ के कारण बाउंस हो… यदि खाताधारक को बैंक खाते पर अपने अधिकार और नियंत्रण से वंचित कर दिया जाता है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि खाता उसके द्वारा मेंटेन (maintain) किया जा रहा था।”
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के राजेश मीणा बनाम हरियाणा राज्य के फैसले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने पुष्टि की कि “उसके द्वारा मेंटेन किया गया खाता” अभिव्यक्ति का अर्थ है कि खाताधारक वित्तीय लेनदेन को नियंत्रित करने वाले आदेशों को निष्पादित करने में सक्षम होना चाहिए।
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:
“चेक का अनादर (dishonour) फंड की कमी के कारण नहीं, बल्कि वाइंडिंग-अप कार्यवाही और IRP की नियुक्ति के दौरान भुगतान पर वैधानिक प्रतिबंध के कारण हुआ। यह परिस्थिति धारा 138 के दायरे से पूरी तरह बाहर है, क्योंकि अपर्याप्त फंड के कारण अनादर का आवश्यक तत्व स्थापित नहीं होता है।”
निर्णय
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि चूंकि IRP और लिक्विडेटर की नियुक्ति के कारण अप्रैल 2019 के बाद याचिकाकर्ताओं का कंपनी के खातों पर कोई नियंत्रण नहीं था, इसलिए समनिंग आदेश अनुचित थे।
तदनुसार, कोर्ट ने 19 जनवरी 2021, 21 जनवरी 2021 और 22 जनवरी 2021 के समनिंग आदेशों और उनके आधार पर दर्ज आपराधिक शिकायतों को रद्द कर दिया।
केस डिटेल्स:
केस टाइटल: फरहाद सूरी और अन्य बनाम प्रवीण चौधरी और अन्य (तथा अन्य याचिकाएं)
केस नंबर: CRL.M.C. 1347/2021, CRL.M.C. 1360/2021, CRL.M.C. 1624/2021
कोरम: जस्टिस नीना बंसल कृष्णा
साइटेशन: 2025:DHC:11418

