दिल्ली हाईकोर्ट ने चीनी संस्थाओं द्वारा विकसित AI चैटबॉट डीपसीक पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित सुनवाई में तेजी लाने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया कि जनहित याचिका (PIL) को प्राथमिकता देने की कोई जल्दी नहीं है। मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया, जिन्हें जल्द सुनवाई के लिए पर्याप्त आधार नहीं मिले।
सत्र के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मामला संवेदनशील प्रकृति का है और इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। हालांकि, अदालत ने इन दावों को खारिज कर दिया और सलाह दी कि अगर यह हानिकारक लगता है तो प्लेटफॉर्म का उपयोग न करें। पीठ ने टिप्पणी की, “भारत में इस तरह के प्लेटफॉर्म लंबे समय से उपलब्ध हैं। केवल डीपसीक ही नहीं, बल्कि ऐसे कई प्लेटफॉर्म उपलब्ध हैं। अगर यह इतना हानिकारक है, तो इसका इस्तेमाल न करें।”
वकील भावना शर्मा द्वारा शुरू की गई याचिका का उद्देश्य संभावित साइबर हमलों और डेटा उल्लंघनों से नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा और सरकारी प्रणालियों की अखंडता की रक्षा के लिए पूरे भारत में डीपसीक तक पहुँच को रोकना था। आवेदन में डीपसीक एप्लिकेशन में लॉन्च के तुरंत बाद पहचानी गई कई कमज़ोरियों का हवाला दिया गया, जिसके कारण चैट हिस्ट्री और बैक-एंड डेटा सहित संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा के महत्वपूर्ण लीक होने की संभावना थी।
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याचिका के तत्काल लहजे के बावजूद, अदालत ने माना कि इंटरनेट वैश्विक स्तर पर असंख्य सेवाएँ और एप्लिकेशन प्रदान करता है, और व्यक्तियों के लिए सभी उपलब्ध विकल्पों का उपयोग करना अनिवार्य नहीं है। अदालत ने पहले केंद्र के वकील को मामले पर निर्देश प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त समय दिया था, जिससे सुनवाई 16 अप्रैल तक आगे बढ़ गई।