दिल्ली हाईकोर्ट ने अपनी प्रशासनिक समितियों का पुनर्गठन कर दिया है। यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से जुड़ा एक विवाद चर्चा में है। हाईकोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किए गए एक सर्कुलर में कहा गया है कि “इस न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों की समितियों में तत्काल प्रभाव से बदलाव किए गए हैं।”
न्यायमूर्ति वर्मा, जो हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों में से एक हैं, कॉलेजियम और कई अहम प्रशासनिक समितियों के सदस्य थे। वह 10 से अधिक समितियों में शामिल थे, जिनमें प्रशासनिक और सामान्य पर्यवेक्षण, न्यायालय विकास एवं योजना, स्टेट कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम, और दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (DIAC) की मध्यस्थता समिति शामिल हैं। इसके साथ ही वह सूचना प्रौद्योगिकी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समिति के अध्यक्ष भी थे।
समितियों का यह पुनर्गठन 14 मार्च को न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर आग लगने के बाद बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के आरोपों के बीच हुआ है। इन आरोपों की जांच के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने 22 मार्च को तीन सदस्यीय समिति गठित की है। न्यायमूर्ति वर्मा ने इन आरोपों को “पूरी तरह से निराधार” बताया है और इसे अपनी छवि खराब करने की साजिश करार दिया है।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 20 और 24 मार्च को हुई बैठकों में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वापस भेजने की सिफारिश की। 24 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट ने न्यायमूर्ति वर्मा से सभी न्यायिक कार्य तत्काल प्रभाव से वापस ले लिए।
मामले से जुड़े सूत्रों के अनुसार, न्यायमूर्ति वर्मा की प्रमुख समितियों में लगातार उपस्थिति से कार्य संचालन में गतिरोध उत्पन्न हो सकता था।
वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने न्यायमूर्ति वर्मा के ट्रांसफर का विरोध किया है और उनके दिल्ली एवं इलाहाबाद हाईकोर्ट में कार्यकाल के दौरान दिए गए निर्णयों की समीक्षा की मांग की है।