बलात्कार मामले में आरोप तय करने के लिए पीड़िता का बयान पर्याप्त, आंतरिक मेडिकल जांच से इनकार बाधा नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि बलात्कार पीड़िता का बयान प्रथम दृष्टया अपराध की पुष्टि करता है, तो केवल आंतरिक मेडिकल जांच से इनकार करने के आधार पर आरोपी को आरोप तय करने के स्तर पर राहत नहीं दी जा सकती। न्यायमूर्ति डॉ. स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने एक आरोपी के खिलाफ बलात्कार, आपराधिक धमकी और जबरन गर्भपात कराने जैसे गंभीर आरोपों को बरकरार रखा, हालांकि, नशीला पदार्थ देने के आरोप को मेडिकल साक्ष्य के अभाव में खारिज कर दिया।

यह मामला आरोपी सचिंद्र प्रियदर्शी द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका से संबंधित है, जिसमें उसने कड़कड़डूमा कोर्ट के एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के 10 जनवरी, 2024 के आदेश को चुनौती दी थी। निचली अदालत ने आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(n) (बार-बार बलात्कार), 313 (सहमति के बिना गर्भपात), 323 (चोट पहुंचाना), 506(II) (जान से मारने की धमकी) और 328 (जहर देकर नुकसान पहुंचाना) के तहत आरोप तय किए थे।

क्या है पूरा मामला?

अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता ने 29 नवंबर, 2019 को मंडवाली पुलिस स्टेशन में एक शिकायत दर्ज कराई थी। पीड़िता, जो आरोपी की सहकर्मी थी, ने आरोप लगाया कि 22 सितंबर, 2018 को आरोपी ने उसे एक पार्टी के बहाने अपने घर बुलाया। वहां पहुंचने पर उसने पाया कि आरोपी अकेला था। आरोपी ने उसे कोल्ड ड्रिंक पिलाई, जिसके बाद वह बेहोश हो गई। होश आने पर उसने खुद को आपत्तिजनक हालत में पाया।

Video thumbnail

जब पीड़िता ने आरोपी से इस बारे में पूछा, तो उसने जबरन शारीरिक संबंध बनाने की बात कबूल कर ली। उसने पीड़िता से शादी का वादा किया, लेकिन साथ ही यह धमकी भी दी कि यदि उसने इस घटना के बारे में किसी को बताया तो वह उसकी नग्न तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा। आरोप है कि इसके बाद आरोपी ने शादी का झांसा देकर और धमकी देकर बार-बार उसके साथ बलात्कार किया। पीड़िता ने यह भी आरोप लगाया कि इस दौरान वह दो बार गर्भवती हुई और आरोपी ने बिना किसी डॉक्टरी सलाह के उसे दवाएं देकर उसका गर्भपात करा दिया।

अदालत में दोनों पक्षों की दलीलें

आरोपी के वकील ने मुख्य रूप से यह तर्क दिया कि पीड़िता के FIR और Cr.P.C. की धारा 161 और 164 के तहत दिए गए बयानों में विरोधाभास है। सबसे महत्वपूर्ण दलील यह थी कि पीड़िता ने अपनी आंतरिक मेडिकल जांच कराने से इनकार कर दिया था, जो Cr.P.C. की धारा 164A के तहत एक अनिवार्य प्रक्रिया है। वकील के अनुसार, इस प्रक्रिया का पालन न होने के कारण आरोपी को आरोपमुक्त किया जाना चाहिए।

READ ALSO  पत्नी का पति को कायर और बेरोजगार कहना और माता-पिता से अलग होने के लिए मजबूर करना क्रूरता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

इसके विपरीत, राज्य सरकार के वकील ने कहा कि कानून के अनुसार पीड़िता की मेडिकल जांच की गई थी। उसका आंतरिक जांच से इनकार करना प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि आरोप तय करने के स्तर पर अदालत को केवल यह देखना होता है कि क्या मामले में अपराध का “गंभीर संदेह” बन रहा है या नहीं, और इस स्तर पर सबूतों का विस्तृत मूल्यांकन नहीं किया जाना चाहिए।

हाईकोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और रिकॉर्ड का अध्ययन करने के बाद आरोपी की दलीलों को “कानूनी रूप से निराधार” पाया। न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि यौन अपराधों के मामलों में आरोप तय करने के लिए स्थापित कानूनी सिद्धांतों के आलोक में आरोपी का तर्क स्वीकार्य नहीं है।

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के गुलाम हसन बेग बनाम मोहम्मद मकबूल माग्रे मामले का हवाला देते हुए कहा, “आरोप तय करते समय, अदालत को केवल यह सुनिश्चित करना होता है कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सामग्री आरोपी के खिलाफ अपराध का अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त है। इस स्तर पर एक मजबूत संदेह भी काफी है।

अदालत ने विशेष रूप से बलात्कार के मामलों पर टिप्पणी करते हुए कहा, “IPC की धारा 376 के तहत अपराध के संदर्भ में, यह एक स्थापित सिद्धांत है कि Cr.P.C. की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता का बयान, जिसे धारा 161 के बयान का समर्थन प्राप्त हो, अपने आप में आरोप तय करने के लिए एक प्रथम दृष्टया सामग्री हो सकता है।”

READ ALSO  गुजारा भत्ता देने के लिए ट्रायल कोर्ट की विवेकाधीन शक्ति पूरी तरह से अवरुद्ध नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया

मेडिकल जांच के मुद्दे पर, अदालत ने पाया कि अंतिम कथित घटना जुलाई 2019 में हुई थी, जबकि जांच नवंबर 2019 में हुई। इसलिए, इतने समय बाद आंतरिक जांच का साक्ष्य के रूप में बहुत सीमित महत्व होता। अदालत ने कहा कि पीड़िता की मेडिकल जांच कराई गई थी, और केवल आंतरिक जांच से इनकार करना उसके बयान को प्रारंभिक चरण में खारिज करने का आधार नहीं हो सकता।

विभिन्न धाराओं के तहत आरोपों की समीक्षा करते हुए, अदालत ने पाया:

  • धारा 328 (नशीला पदार्थ देना): इस आरोप के समर्थन में कोई मेडिकल सबूत नहीं था, इसलिए आरोपी को इस धारा से मुक्त कर दिया गया।
  • धारा 376(2)(n), 323, और 506(II): पीड़िता के स्पष्ट आरोपों के आधार पर इन धाराओं के तहत आरोप बरकरार रखे गए।
  • धारा 313 (गर्भपात कराना): पीड़िता के विशिष्ट आरोपों को देखते हुए, इस धारा के तहत भी आरोप को सही ठहराया गया।
READ ALSO  पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट की पहल की सराहना की

अंततः, हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को आंशिक रूप से संशोधित करते हुए आरोपी को केवल धारा 328 IPC के तहत आरोपमुक्त किया, जबकि अन्य सभी गंभीर धाराओं के तहत आरोप तय करने के आदेश को बरकरार रखा।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles