दिल्ली हाईकोर्ट ने पूछा पतंजलि से—अन्य च्यवनप्राश को ‘धोखा’ कैसे कह सकते हैं; कहा, तुलना ठीक है पर निंदा नहीं

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को योगगुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद से यह पूछा कि वह अपने विज्ञापन में अन्य च्यवनप्राश उत्पादों को “धोखा” यानी “फ्रॉड” या “धोखाधड़ी” कैसे कह सकती है। अदालत ने कहा कि तुलना करना तो अनुमत है, लेकिन दूसरों की निंदा करना नहीं।

न्यायमूर्ति तेजस कारिया, जो डाबर इंडिया की ओर से दायर अंतरिम निषेधाज्ञा याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, ने मौखिक रूप से कहा, “आप यह कह सकते हैं कि आप सबसे अच्छे हैं, लेकिन दूसरों को ‘धोखा’ नहीं कह सकते, क्योंकि अंग्रेज़ी में इसका अर्थ ‘fraud’ और ‘deception’ होता है।” अदालत ने इस पर आदेश सुरक्षित रख लिया।

डाबर इंडिया की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी ने तर्क दिया कि पतंजलि का 25 सेकंड का विज्ञापन — “51 जड़ी-बूटियां, 1 सच्चाई, पतंजलि च्यवनप्राश” — सभी अन्य च्यवनप्राश ब्रांडों को भ्रामक बताता है। विज्ञापन में एक महिला अपने बच्चे को च्यवनप्राश खिलाते हुए कहती है, “चलो धोखा खाओ,” जिसके बाद रामदेव कहते हैं, “अधिकांश लोग च्यवनप्राश के नाम पर धोखा खा रहे हैं।”

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सेठी ने कहा कि इस तरह के शब्द पूरे च्यवनप्राश वर्ग को “धोखाधड़ी” के रूप में पेश करते हैं, जिससे बाजार में गलत संदेश जाता है। “च्यवनप्राश को एक श्रेणी के रूप में ‘भ्रामक’ बताया जा रहा है। यह बाजार में घबराहट पैदा करने के लिए किया जा रहा है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने जोड़ा कि विज्ञापन में कहा गया वाक्य “क्यों 40 जड़ी-बूटियों वाला साधारण च्यवनप्राश लें” सीधे डाबर की ओर इशारा करता है, क्योंकि डाबर का च्यवनप्राश 40 जड़ी-बूटियों से बनाया जाता है।

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सेठी ने कहा, “यह ‘धोखा खाओ’ कहना मतलब है कि बाकी उत्पाद झूठे हैं। यह शब्द अपने आप में निंदात्मक हैं, और जब यह एक ‘योगगुरु’ की ओर से आता है, तो यह और भी गंभीर हो जाता है, क्योंकि लोग योगगुरु को सत्यता से जोड़ते हैं।”

पतंजलि की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव नायर ने कहा कि “धोखा” शब्द का प्रयोग “साधारण” या “अप्रभावी” अर्थ में किया गया है।
“जब मैं कहता हूं ‘धोखा’, मेरा मतलब है कि बाकी सब ‘साधारण’ च्यवनप्राश हैं, और मेरा उत्पाद विशेष है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने जोड़ा कि पतंजलि ने यह नहीं कहा कि अन्य उत्पाद नकली या मिलावटी हैं, बल्कि केवल यह कि वे कम प्रभावी हैं।

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इस पर न्यायमूर्ति कारिया ने कहा, “साधारण और विशेष एक बात है, लेकिन ‘धोखा’ अलग है। यह नकारात्मक शब्द है, जिसका अर्थ ‘फ्रॉड’ होता है।”

जुलाई में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने पतंजलि को ऐसे विज्ञापन प्रसारित करने से रोक दिया था और यह पंक्ति हटाने का निर्देश दिया था — “क्यों लें 40 जड़ी-बूटियों वाला साधारण च्यवनप्राश?”
बाद में डिवीजन बेंच ने भी उस आदेश को बरकरार रखा था और कहा था कि तुलनात्मक विज्ञापन में प्रतिद्वंद्वी की बदनामी नहीं की जा सकती।

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अब डाबर की इस नई याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया गया है। अदालत यह तय करेगी कि क्या “धोखा” शब्द का प्रयोग प्रतिस्पर्धी उत्पादों की अनुचित निंदा की श्रेणी में आता है या नहीं।

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