दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी कि मुस्लिम और सिख समुदायों के अलावा अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को भी राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) के अध्यक्ष पद के लिए विचार किया जाए।
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 में यह तो प्रावधान है कि आयोग में अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्य होंगे, लेकिन किसी विशेष समुदाय से अध्यक्ष नियुक्त करने की कोई बाध्यता नहीं है।
पीठ ने कहा, “धारा 3 केवल यह बताती है कि आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पाँच सदस्य होंगे। अधिनियम यह नहीं कहता कि आयोग के सभी सदस्य अल्पसंख्यक समुदायों से ही हों।”
अदालत ने आगे कहा, “यह प्रावधान यह भी नहीं कहता कि सदस्य या अध्यक्ष किसी विशेष अल्पसंख्यक समुदाय से ही होना चाहिए।”
यह याचिका सलेक चंद जैन ने दाखिल की थी। उन्होंने कहा कि धारा 3 के अनुसार अध्यक्ष और सदस्यों को अल्पसंख्यक समुदायों से लिया जाना चाहिए, लेकिन अब तक की नियुक्तियों में केवल मुस्लिम और सिख समुदायों को ही प्रतिनिधित्व मिला है।
जैन ने बताया कि अब तक 16 अध्यक्षों में से 14 मुस्लिम और 2 सिख रहे हैं, जबकि ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन समुदायों को कभी प्रतिनिधित्व नहीं मिला।
उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि सरकार को निर्देश दिया जाए कि सभी मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को समान रूप से अवसर दिया जाए।
पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कानून में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है जिससे सरकार को ऐसा करने का निर्देश दिया जा सके। हालांकि, अदालत ने जैन को यह स्वतंत्रता दी कि वे अपनी शिकायत के संबंध में सरकार को एक प्रतिवेदन प्रस्तुत करें।
अदालत ने कहा कि यदि ऐसा कोई प्रतिवेदन दिया जाता है, तो सरकार उसे कानून के अनुसार विचार करेगी।




