दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई किरायेदार किराए के परिसर का कोई हिस्सा किसी सह-मालिक (co-owner) से खरीद लेता है, तो वह उस संपत्ति का पूर्ण स्वामी (absolute owner) नहीं बन जाता है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी खरीद से मकान मालिक और किरायेदार का रिश्ता (landlord-tenant relationship) खत्म नहीं होता है।
न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी की पीठ ने यह स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘डॉक्ट्रिन ऑफ मर्जर’ (Doctrine of Merger) के तहत किरायेदारी तभी समाप्त मानी जा सकती है जब पट्टेदार (lessee) और पट्टादाता (lessor) का संपूर्ण संपत्ति में हित एक ही समय पर एक ही व्यक्ति में निहित हो जाए।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला करोल बाग के देव नगर स्थित संपत्ति संख्या 6165/1 में दो दुकानों से जुड़ा है। प्रतिवादी/मकान मालिक अशोक कुमार ने दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम, 1958 की धारा 14(1)(e) के तहत याचिका दायर कर याचिकाकर्ता/किरायेदार सुखदेव @ सुखदेव राज की बेदखली की मांग की थी।
मकान मालिक का कहना था कि उन्हें एक रेस्तरां/ढाबा खोलने के लिए परिसर की वास्तविक (bona fide) आवश्यकता है और उनके पास कोई अन्य उपयुक्त विकल्प मौजूद नहीं है। उन्होंने बताया कि 24 अप्रैल, 2015 के एक समझौता विलेख (Settlement Agreement) के बाद वे और उनकी बहन, श्रीमती मंजू देवी, संयुक्त रूप से इस संपत्ति के मालिक बने थे।
दूसरी ओर, किरायेदार ने बेदखली का विरोध करते हुए तर्क दिया कि उसने मकान मालिक की बहन, श्रीमती मंजू देवी से 15 दिसंबर, 2016 को एक पंजीकृत बिक्री विलेख (Sale Deed) के माध्यम से संपत्ति खरीद ली है। किरायेदार का दावा था कि वह अब संपत्ति का मालिक बन गया है, इसलिए मकान मालिक-किरायेदार का रिश्ता समाप्त हो चुका है और बेदखली याचिका खारिज की जानी चाहिए।
विद्वान अतिरिक्त किराया नियंत्रक (ARC) ने 13 अगस्त, 2024 को किरायेदार की दलीलों को खारिज करते हुए बेदखली का आदेश पारित किया था, जिसके खिलाफ किरायेदार ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
पक्षों की दलीलें
किरायेदार का पक्ष: वरिष्ठ अधिवक्ता श्री संजीव सागर ने किरायेदार की ओर से तर्क दिया कि:
- चूंकि सह-मालिक श्रीमती मंजू देवी ने निचली अदालत में सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश I नियम 10 के तहत आवेदन दायर किया था, जिसे नजरअंदाज कर ARC ने गलती की है।
- किरायेदार के पास वैध बिक्री विलेख है, जिससे वह स्वामी बन गया है और किरायेदारी समाप्त हो गई है।
मकान मालिक का पक्ष: अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा ने मकान मालिक की ओर से दलील दी कि:
- किरायेदार जिस बिक्री विलेख पर भरोसा कर रहा है, वह पूरी संपत्ति के लिए है, जबकि श्रीमती मंजू देवी केवल 50% की सह-मालिक थीं।
- बिक्री विलेख का निष्पादन ‘लिस पेंडेंस’ (lis pendens) के सिद्धांत से प्रभावित है क्योंकि स्वामित्व को लेकर एक दीवानी मुकदमा (CS No. 88/2017) लंबित था।
- सुप्रीम कोर्ट के प्रमोद कुमार जायसवाल बनाम बीबी हुस्न बानो (2005) के फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने तर्क दिया कि केवल एक सह-मालिक से हिस्सा खरीदने पर किरायेदारी समाप्त नहीं होती है।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
जस्टिस सौरभ बनर्जी ने रिकॉर्ड और कानूनी नजीरों की जांच करने के बाद किरायेदार की याचिका को खारिज कर दिया।
1. मर्जर का सिद्धांत और लीज की समाप्ति कोर्ट ने इस मुख्य मुद्दे पर विचार किया कि क्या सह-मालिक से हिस्सा खरीदने पर किरायेदारी खत्म हो जाती है। कोर्ट ने प्रमोद कुमार जायसवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा जताया।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा:
“यह स्पष्ट है कि केवल एक सह-मालिक से अधिकारों/हित/स्वामित्व के हस्तांतरण पर किरायेदारी के अधिकार निर्धारित नहीं किए जा सकते। संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 111(d) के अनुसार, जब तक कि किसी संपत्ति के संपूर्ण अधिकार/हित एक ही समय पर एक ही व्यक्ति में निहित नहीं हो जाते, तब तक संपदा का विलय (merger of estate) नहीं होता।”
कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि जब तक किरायेदार और मकान मालिक दोनों के हितों का पूरा समूह एक ही व्यक्ति में एक साथ, समान कानूनी क्षमता में नहीं मिल जाता, तब तक किरायेदारी की स्थिति का निर्धारण सफलतापूर्वक नहीं किया जा सकता।
2. बिक्री विलेख की वैधता कोर्ट ने noted किया कि किरायेदार को पता था कि मकान मालिक भी एक सह-मालिक है। एस.के. गुलाम लालचंद बनाम नंदू लाल शॉ (2024) के फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि विभाजन के बिना एक सह-मालिक पूरी संपत्ति नहीं बेच सकता।
कोर्ट ने कहा:
“उक्त बिक्री विलेख किरायेदार की मदद नहीं कर सकता क्योंकि इसे मकान मालिक की सहमति के बिना निष्पादित किया गया था, और श्रीमती मंजू देवी द्वारा विषय संपत्ति को किरायेदार को नहीं बेचा जा सकता था।”
3. सह-मालिक द्वारा बेदखली याचिका की पोषणीयता हाईकोर्ट ने इंडियन अम्ब्रेला मैन्युफैक्चरिंग कंपनी और मोहिंदर प्रसाद जैन के मामलों का संदर्भ देते हुए दोहराया कि एक सह-मालिक द्वारा दायर बेदखली याचिका बनाए रखने योग्य (maintainable) है और इसके लिए अन्य सह-मालिकों से ‘अनापत्ति प्रमाण पत्र’ (NOC) की आवश्यकता नहीं होती है।
4. किरायेदार का संदिग्ध आचरण कोर्ट ने किरायेदार के आचरण पर संदेह व्यक्त किया, क्योंकि बिक्री विलेख 15 दिसंबर, 2016 को निष्पादित किया गया था, जबकि बेदखली याचिका मई 2016 में ही दायर की जा चुकी थी। कोर्ट ने टिप्पणी की कि कोई भी समझदार व्यक्ति, जिसे मुकदमेबाजी की जानकारी हो, अदालत को बताए बिना मुकदमे के दौरान बिक्री विलेख निष्पादित नहीं करेगा।
निष्कर्ष
दिल्ली हाईकोर्ट ने विद्वान ARC के फैसले में कोई त्रुटि नहीं पाई। कोर्ट ने कहा कि सरला आहूजा बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के अनुसार पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार (revision jurisdiction) के सीमित दायरे के तहत हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता है।
अदालत ने किरायेदार की याचिका खारिज करते हुए उसे दुकानों का खाली और शांतिपूर्ण कब्जा मकान मालिक को सौंपने का निर्देश दिया।
केस विवरण (Case Summary Details)
- केस शीर्षक: सुखदेव @ सुखदेव राज बनाम अशोक कुमार (RC.REV. 311/2024)
- कोरम: न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी
- फैसले की तारीख: 26 नवंबर, 2025
- कानूनी मुद्दा: क्या किरायेदार द्वारा एक सह-मालिक से किराए के परिसर का अविभाजित हिस्सा खरीदने पर संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 111(d) के तहत लीज समाप्त हो जाती है और क्या इससे वास्तविक आवश्यकता के आधार पर दायर बेदखली याचिका अपोषणीय हो जाती है।
- परिणाम: किरायेदार द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका खारिज। रेंट कंट्रोलर का बेदखली आदेश बरकरार।
- याचिकाकर्ता के वकील: वरिष्ठ अधिवक्ता श्री संजीव सागर और श्री सचिन पुरी, साथ में श्री रहमान, श्री सुनील कुमार, सुश्री महक गहलोत और श्री सूरज सिंह।
- प्रतिवादी के वकील: श्री आलोक सिन्हा, श्री संदीप कुमार, सुश्री दिव्या और श्री आकाश सैनी।




