दिल्ली हाईकोर्ट ने वकील के मुंह पर ‘लाल टेप’ लगाकर पेश होने पर जताई “कड़ी नाराजगी”; याचिकाकर्ता ने ठुकराया सरकार का समझौता प्रस्ताव

दिल्ली हाईकोर्ट ने विरोध स्वरूप मुंह पर लाल टेप (Red Tape) लगाकर कोर्ट में पेश होने वाले एक वकील के आचरण पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की है। जस्टिस नितिन वासुदेव सांब्रे और जस्टिस अनिश दयाल की खंडपीठ ने इस आचरण को “अशोभनीय और अनुपयुक्त” (Unbecoming and Unbefitting) करार दिया। हालांकि, बार में वकील के लंबे अनुभव को देखते हुए कोर्ट ने उनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई करने से परहेज किया। इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी रिकॉर्ड पर लिया कि याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार के समझौता प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।

यह टिप्पणियाँ 1 दिसंबर, 2025 के आदेश में कोर्ट ऑन इट्स ओन मोशन बनाम दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन (CONT.CAS(C) 16/2016) और नंद किशोर बनाम जीएनसीटीडी (W.P.(C) 3858/2025) से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान की गईं।

घटनाक्रम और दलीलें

सुनवाई शुरू होते ही एनसीटी दिल्ली सरकार (GNCTD) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्री संजय जैन ने अपनी दलीलें शुरू करने का इरादा जाहिर किया। इसी दौरान याचिकाकर्ता के वकील श्री आर.के. सैनी कोर्ट रूम में दाखिल हुए। कोर्ट ने अपने आदेश में नोट किया कि श्री सैनी “आराम से अपने होंठों पर लाल स्टिकफास्ट टेप लगाकर” कोर्ट में आए।

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श्री जैन ने कोर्ट को सूचित किया कि राज्य सरकार ने प्रस्ताव पर पुनर्विचार किया है और याचिकाकर्ता को लिखित में एक नया प्रस्ताव दिया गया है। इस प्रस्ताव को कोर्ट और विपक्षी वकील के सामने रखा गया।

प्रस्ताव सामने आने पर श्री सैनी ने अपने होंठों से लाल टेप हटाया। शुरुआत में कोर्ट को लगा कि शायद वकील के चेहरे पर कोई चोट आई है। हालांकि, पूछताछ करने पर श्री सैनी ने बेंच को बताया कि “पिछली दो सुनवाई में उन्हें कोर्ट द्वारा दलीलों के बीच में ही रोक दिया गया था, इसलिए उन्होंने यह प्रतीकात्मक रूप से दर्शाने के लिए होंठों पर लाल टेप लगाया कि उन्हें चुप करा दिया गया है।”

समझौते के गुण-दोष पर श्री सैनी ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता “राज्य सरकार द्वारा दिए गए प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, भले ही सरकार 5,00,000 रुपये की मुआवजा राशि बढ़ाने को तैयार हो।” कोर्ट ने इस राशि को प्रस्ताव में दी गई “उचित राशि” माना था।

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कोर्ट की टिप्पणियाँ और विश्लेषण

खंडपीठ ने वकील द्वारा अपनाए गए विरोध के तरीके पर गंभीर आपत्ति जताई। श्री सैनी की इस शिकायत पर कि उन्हें चुप कराया गया, कोर्ट ने पिछली सुनवाई के संदर्भ को स्पष्ट करते हुए कहा:

“श्री सैनी का उपरोक्त आचरण हमें यह रिकॉर्ड पर लाने के लिए बाध्य करता है कि पिछली कुछ तारीखों पर श्री सैनी द्वारा दी गई दलीलें बहुत लंबी और दोहरावपूर्ण (Repetitive) हो रही थीं। याचिकाकर्ता के मामले को समझने के बाद इस कोर्ट ने श्री सैनी को आगे बहस करने से रोका था, ताकि हम दूसरे पक्ष के वकील का जवाब सुन सकें।”

कोर्ट ने श्री सैनी के आचरण को “पूरी तरह से खराब स्वाद” (Poor Taste) वाला बताया और कहा कि श्री सैनी जैसे वकील, जिनका 25 वर्षों से अधिक का अनुभव है, उनसे ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती।

बेंच ने नोट किया कि यह घटना वकील के खिलाफ उचित आदेश पारित करने के लिए पर्याप्त थी, लेकिन उनकी वरिष्ठता को देखते हुए कोर्ट ने संयम बरता। हालांकि, आदेश में स्पष्ट रूप से अधिवक्ता श्री आर.के. सैनी के “अशोभनीय और अनुपयुक्त आचरण पर कड़ी नाराजगी” दर्ज की गई।

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निर्णय और निर्देश

प्रक्रियात्मक पहलू पर, संशोधन के लिए दायर एक आवेदन (CM APPL. 75400/2025) को श्री सैनी द्वारा वापस लिए जाने के बाद खारिज कर दिया गया।

प्रस्ताव के अस्वीकार किए जाने और सुनवाई के दौरान हुए घटनाक्रम को देखते हुए, कोर्ट ने राज्य सरकार को “अवमानना याचिका और रिट याचिका दोनों में राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा शपथ पत्र (Affidavit) के रूप में अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय” प्रदान किया।

याचिकाकर्ता को भी जवाब दाखिल (Rejoinder) करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया गया है। मामलों को अगली सुनवाई के लिए 21 जनवरी, 2026 के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

केस विवरण:

  • केस टाइटल: Court on its Own Motion v. Delhi Administration Thr BDO और संबंधित मामला।
  • केस नंबर: CONT.CAS(C) 16/2016 और W.P.(C) 3858/2025
  • कोरम: जस्टिस नितिन वासुदेव सांब्रे और जस्टिस अनिश दयाल

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