दिल्ली हाईकोर्ट इस बात पर विचार-विमर्श करने वाला है कि क्या भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत किए जाने से पहले जनता के लिए जारी की जा सकती है। यह प्रश्न एक जनहित याचिका (PIL) का सार है, जो इन रिपोर्टों को संबंधित आधिकारिक पोर्टलों पर शीघ्र जारी करने की मांग करती है, जिसका उद्देश्य दिल्ली के मतदाताओं को उनके वोट डालने से पहले राज्य की वित्तीय स्थिति के बारे में सूचित करना है।
पारदर्शिता और मतदाता सूचना बढ़ाने की धारणा से प्रेरित इस याचिका को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में एक समानांतर अधिवक्ता मिल गया है, जिसने आगामी चुनावों से पहले CAG रिपोर्ट पर चर्चा करने के लिए दिल्ली विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाने का आह्वान किया है। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने बताया कि याचिकाकर्ता की चिंताएँ संविधान द्वारा गारंटीकृत सूचना और जानने के मौलिक अधिकारों में निहित हैं।
हालांकि, CAG का कहना है कि रिपोर्ट को विधानसभा में आधिकारिक रूप से पेश किए जाने तक गोपनीय रखा जाना चाहिए, इस रुख को अदालत में चुनौती दी गई है। सुनवाई के दौरान, अदालत ने पाया कि प्रक्रियात्मक नियमावली विधानसभा के भीतर इन रिपोर्टों पर चर्चा को विनियमित कर सकती है, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि यह जनता के सूचना के व्यापक अधिकार को खत्म कर दे।
अदालत ने अगली सुनवाई 24 जनवरी, 2025 के लिए निर्धारित की है, ताकि CAG के वकील को विस्तृत दलीलें देने का समय मिल सके। याचिकाकर्ता, सेवानिवृत्त सिविल सेवक बृज मोहन का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा ने तर्क दिया कि CAG रिपोर्ट को जनता से छिपाना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत नागरिकों के सूचना के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
लूथरा ने चुनावी बॉन्ड के संबंध में एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित एक मिसाल का हवाला दिया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि चुनावों में सूचित विकल्प बनाने के लिए मतदाताओं का सूचना का अधिकार आवश्यक है। यह दृष्टिकोण सुप्रीम कोर्ट की इस पुष्टि के अनुरूप है कि प्रासंगिक जानकारी का खुलासा चुनावी प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है।