दिल्ली हाई कोर्ट ने एक गर्भवती महिला के 25 हफ्ते के भ्रूण को चिकित्सीय गर्भपात की अनुमति दे दी है। इस भ्रूण में असमान्यता होने के कारण उसके बचने की उम्मीद नही है। कोर्ट ने एम्स अस्पताल की रिपोर्ट पर विचार के बाद 25 वर्षीय गर्भवती महिला के भ्रूण के गर्भापात संबधी याचिका को इजाजत दी है। भ्रूण के गुर्दे न विकसित होने के कारण एम्स ने अपनी जांच के बाद कहा था कि भ्रूण के बचने की आशा कम है।
दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश नवीन चावला ने कहा कि मुझे चिकित्सीय गर्भपात कराने की मंजूरी न देने का कोई कारण नजर नही आता। इसलिए इस याचिका को स्वीकार किया जाता है। इस मामले में कोर्ट की अनुमति जरूरी थी क्योंकि चिकित्सीय गर्भ समापन कानून की धारा 3 के तहत 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करने पर रोक है।
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कोर्ट ने पूर्व में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) के चिकित्सा अधीक्षक को निर्देश दिया था कि वह महिला की मौजूदा स्थिति की जांच के लिये एक बोर्ड का गठन करे। जिसका भ्रूण असामान्यताओं से ग्रस्त है। कोर्ट ने एम्स को भ्रूण की चिकित्सकीय स्थिति और उसकी गर्भावस्था तक जीवित न रहने के अनुमान के संदर्भ में रिपोर्ट पेश करने को कहा था।
याची महिला की पक्षकार अधिवक्ता स्नेहा मुखर्जी ने कहा कि बच्चे के जन्म तक भ्रूण जीवित नही रहेगा। क्योंकि उसकी दोनों किडनी अभी तक विकसित नही हुई है। इस परिस्थिति में महिला को गर्भावस्था की समय सीमा को पूरा करने के लिए बाध्य करना निरर्थक होगा।