दिल्ली हाईकोर्ट ने 31 अक्टूबर, 2025 को एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध में दोषी ठहराया गया है, लेकिन उसे ‘अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958’ (Probation of Offenders Act, 1958) के तहत प्रोबेशन पर रिहा किया गया है, तो उसे उस दोषसिद्धि के आधार पर सरकारी नियुक्ति से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।
यह फैसला एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) द्वारा एक उम्मीदवार की नियुक्ति को रद्द करने के आदेश को दरकिनार करते हुए दिया गया।
न्यायमूर्ति प्रतीक जालान ने रिट याचिका (W.P.(C) 218/2025, राजेश बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य) को स्वीकार करते हुए AAI के 09.12.2024 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसने याचिकाकर्ता की नियुक्ति को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने AAI को याचिकाकर्ता की नियुक्ति करने का निर्देश दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता राजेश ने 25.08.2023 को AAI में ‘जूनियर एक्जीक्यूटिव (कॉमन कैडर)’ के पद के लिए आवेदन किया था। कंप्यूटर आधारित परीक्षा और दस्तावेज़ सत्यापन में सफल होने के बाद, उन्हें 11.04.2024 को नियुक्ति पत्र जारी किया गया और उन्होंने 19.04.2024 को आवश्यक प्रशिक्षण भी शुरू कर दिया।
हालांकि, AAI ने 19.08.2024 को एक आदेश जारी कर उनकी नियुक्ति रद्द कर दी। रद्दीकरण का आधार AAI (कर्मचारियों की सेवा की सामान्य शर्तें और पारिश्रमिक) विनियम, 2003 का रेगुलेशन 6(7)(b) था। यह नियम “नैतिक अधमता से जुड़े अपराधों के लिए दोषी” (convicted of offences involving moral turpitude) ठहराए गए व्यक्तियों को नियुक्ति के लिए अयोग्य मानता है।
यह दोषसिद्धि याचिकाकर्ता की अलग रह रही पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई एक FIR (FIR No. 431/2012) से संबंधित थी, जो भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498A, 406 और 506 के तहत दर्ज की गई थी। एक ट्रायल कोर्ट ने उन्हें 04.09.2014 को धारा 498A और 406 के तहत दोषी ठहराया।
इसके खिलाफ अपील में, अपीलीय अदालत ने 21.09.2015 को यह पाया कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता (उनकी पत्नी) के बीच समझौता हो गया था और उन्होंने आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर की थी। इसे देखते हुए, अपीलीय अदालत ने याचिकाकर्ता को ‘प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट, 1958’ की धारा 4 के तहत प्रोबेशन का लाभ दिया था।
याचिकाकर्ता ने अपनी नियुक्ति रद्द किए जाने को पहले W.P.(C) 13711/2024 में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने 30.09.2024 को AAI को निर्देश दिया था कि वह प्रोबेशन एक्ट की धारा 12 (जो दोषसिद्धि से जुड़ी अयोग्यता को हटाती है) पर विशेष रूप से विचार करते हुए एक नया तार्किक आदेश पारित करे। इसके जवाब में, AAI ने 09.12.2024 को अपने निर्णय में रद्दीकरण को बरकरार रखा, जिसने वर्तमान रिट याचिका को जन्म दिया।
फैसले में यह भी दर्ज किया गया कि यह तथ्यों को छिपाने या गलतबयानी का मामला नहीं था, क्योंकि “याचिकाकर्ता ने अपनी दोषसिद्धि की घोषणा तब की थी जब उसे ऐसा करने की आवश्यकता थी।”
पक्षकारों की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्री साकिब ने तर्क दिया कि प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट की धारा 12 के मद्देनजर, AAI के रेगुलेशन 6(7)(b) के तहत अयोग्यता लागू नहीं की जा सकती। उन्होंने शैतान सिंह मीना बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।
दूसरी ओर, AAI की ओर से सुश्री अंजना गोसाईं ने रद्दीकरण का बचाव किया। उन्होंने तर्क दिया कि “प्रोबेशन पर रिहाई स्वतः ही अयोग्यता को inapplicable (अप्रभावित) कर देती है, ऐसा कोई पक्का नियम नहीं है।” उन्होंने अजीत कुमार बनाम कमिश्नर ऑफ पुलिस मामले का हवाला दिया और तर्क दिया कि जूनियर एक्जीक्यूटिव का पद एक अधिकारी-स्तर का पद है, और AAI अपने वैधानिक नियम को लागू करने के लिए हकदार थी।
न्यायालय का विश्लेषण
न्यायमूर्ति प्रतीक जालान ने अपने विश्लेषण में कहा कि मुख्य प्रश्न यह नहीं था कि AAI को सामान्य कानूनी सिद्धांतों के तहत अयोग्य घोषित करने का अधिकार था या नहीं, बल्कि यह था कि “क्या प्रोबेशन पर रिहाई का तथ्य उसे रेगुलेशन 6(7)(b) के तहत अयोग्यता की कठोरता से बचाता है।”
कोर्ट ने शैतान सिंह मीना मामले में डिवीजन बेंच के फैसले पर प्रमुखता से भरोसा किया। उस फैसले में “नियुक्ति से अयोग्यता” (जिसे धारा 12 कवर करती है) और “पद से बर्खास्तगी” के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर किया गया था।
कोर्ट ने पाया कि वर्तमान मामला शैतान सिंह मीना के तथ्यों के अधिक करीब है। कोर्ट ने AAI द्वारा अजीत कुमार मामले (जो दिल्ली पुलिस में एक कांस्टेबल की भर्ती से संबंधित था) पर किए गए भरोसे को सही नहीं माना, क्योंकि वह एक कानून प्रवर्तन (law enforcement) पद था।
AAI ने यह तर्क दिया था कि जूनियर एक्जीक्यूटिव एक अधिकारी-स्तर का पद है और इस कैडर का व्यक्ति अंततः “एयरपोर्ट डायरेक्टर” के पद तक पहुंच सकता है। कोर्ट ने इस तर्क को “एक आजीविका से वंचित करने के लिए… बहुत अस्पष्ट और सट्टा” (too vague and speculative) मानते हुए खारिज कर दिया।
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि याचिकाकर्ता प्रोबेशन एक्ट की धारा 12 में निहित अयोग्यता से सुरक्षा का हकदार है। फैसले में कहा गया: “हालांकि याचिकाकर्ता को धारा 498A और 406 IPC के तहत दोषी ठहराया गया था, लेकिन उसे अपीलीय अदालत द्वारा प्रोबेशन पर रिहा कर दिया गया था, जब उसके और शिकायतकर्ता [उसकी पत्नी] के बीच कार्यवाही सुलझ गई थी… जिस पद के लिए याचिकाकर्ता को नियुक्ति की पेशकश की गई थी, वह ऐसा नहीं था कि उसकी दोषसिद्धि का इतना स्थायी प्रभाव हो, कि उसे वैधानिक प्रावधानों के लाभ से वंचित कर दिया जाए।”
निर्णय
हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए AAI द्वारा जारी 09.12.2024 के रद्दीकरण आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि AAI ने पहले यह सूचित किया था कि एक पद याचिकाकर्ता के लिए रिक्त रखा गया है। तदनुसार, कोर्ट ने AAI को “उक्त रिक्त पद पर याचिकाकर्ता को नियुक्त करने” का निर्देश दिया।




