केवल वरिष्ठता के आधार पर वेतन वृद्धि का दावा नहीं किया जा सकता, यदि जूनियर का उच्च वेतन लंबी सेवा और एसीपी के कारण है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT), प्रधान पीठ के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें केंद्र सरकार को एक वरिष्ठ कर्मचारी का वेतन उसके जूनियर के बराबर करने (Stepping up of pay) का निर्देश दिया गया था। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि यदि किसी जूनियर कर्मचारी का वेतन उसकी लंबी सेवा अवधि और निचले पद पर मिले वित्तीय उन्नयन (Financial Upgradations) के कारण अधिक है, तो वरिष्ठ कर्मचारी समान वेतन या वेतन वृद्धि का हकदार नहीं है।

हाईकोर्ट ने भारत संघ (Union of India) द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए ट्रिब्यूनल के 25 मई, 2023 के आदेश को खारिज कर दिया। कानूनी सवाल यह था कि क्या एक वरिष्ठ कर्मचारी, जिसे अपने जूनियर से पहले उच्च पद पर पदोन्नत किया गया है, वेतन समतुल्यता (Pay Parity) का दावा कर सकता है, जबकि जूनियर को फीडर कैडर में काफी लंबी सेवा और सुनिश्चित करियर प्रगति (ACP) योजना के लाभों के कारण अधिक वेतन मिल रहा हो। कोर्ट ने कहा कि ऐसी विसंगतियां नियमों और कार्यालय ज्ञापनों (O.M.) के तहत वेतन बढ़ाने का आधार नहीं बनतीं।

विवाद की पृष्ठभूमि

प्रतिवादी, दुर्गा दत्त सैनी को 29 अप्रैल, 1986 को ऑडिटर के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें 1992 में वरिष्ठ ऑडिटर और बाद में 6 अगस्त, 2001 को सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से अनुभाग अधिकारी (A) [SO(A)] के पद पर पदोन्नत किया गया।

जिस जूनियर कर्मचारी (सुजीत कुमार सिंह) से तुलना की जा रही थी, उन्होंने 11 अप्रैल, 1972 को सेवा शुरू की थी, जो प्रतिवादी से 14 साल पहले थी। श्री सिंह को प्रतिवादी के बाद 9 जनवरी, 2002 को SO(A) के पद पर पदोन्नत किया गया था। हालांकि, पदोन्नति के समय श्री सिंह का वेतन (7,500/- रुपये) प्रतिवादी (6,900/- रुपये) की तुलना में अधिक था।

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इस असमानता के खिलाफ प्रतिवादी ने 2019 में ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया। ट्रिब्यूनल ने उनका आवेदन स्वीकार करते हुए सरकार को निर्देश दिया कि प्रतिवादी का वेतन उनकी पदोन्नति की तारीख से श्री सिंह के बराबर तय किया जाए। इसके खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका भी ट्रिब्यूनल द्वारा खारिज कर दी गई थी।

पक्षों की दलीलें

भारत संघ (याचिकाकर्ता): केंद्र सरकार के वकील ने तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल ने इस तथ्य की अनदेखी की कि यह मामला 2002 में उठी विसंगति के 17 साल बाद दायर किया गया था, जो समय सीमा (Limitation) के बाहर था। योग्यता के आधार पर, उन्होंने कहा कि श्री सिंह ने प्रतिवादी से 14 साल पहले सेवा शुरू की थी और उन्हें अधिक वेतन वृद्धि (Increments) मिली थी।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि श्री सिंह को 24 साल की सेवा पूरी करने के बाद ACP योजना के तहत दूसरा वित्तीय उन्नयन मिलने के कारण 9 अगस्त, 1999 से ही उच्च वेतनमान प्राप्त हो रहा था। यह भी कहा गया कि वेतन वृद्धि (Stepping up) तभी लागू होती है जब विसंगति सीधे मौलिक नियम (FR) 22-C के लागू होने का परिणाम हो। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के भारत संघ बनाम आर. स्वामीनाथन (1997) के फैसले और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के 1993 के ज्ञापन का हवाला दिया।

प्रतिवादी (स्वयं): प्रतिवादी ने तर्क दिया कि याचिका देरी से दायर की गई है और केवल अवमानना कार्यवाही के कारण लाई गई है। उन्होंने मद्रास ट्रिब्यूनल के आर. श्रीधरन बनाम रक्षा लेखा नियंत्रक (2002) के फैसले का सहारा लिया और दावा किया कि यह मामला उनके पक्ष में है। उन्होंने DoPT के 26 अक्टूबर, 2018 के ज्ञापन का हवाला देते हुए कहा कि उच्च पद पर वरिष्ठ सरकारी कर्मचारी का वेतन जूनियर के बराबर किया जाना अनिवार्य है।

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कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन

हाईकोर्ट ने दोनों कर्मचारियों के करियर ग्राफ की जांच की। कोर्ट ने पाया कि हालांकि प्रतिवादी 6 अगस्त, 2001 को SO(A) ग्रेड में श्री सिंह से वरिष्ठ हो गए थे, लेकिन श्री सिंह की नियुक्ति 1972 में हुई थी और वे अपनी सेवा की लंबाई और ACP लाभों के कारण वरिष्ठ ऑडिटर के फीडर कैडर में उच्च वेतन प्राप्त कर रहे थे।

वेतन नियमों का अनुप्रयोग: पीठ ने केंद्रीय सिविल सेवा (संशोधित वेतन) नियम, 2008 के नियम 7 के नोट 10 का उल्लेख किया, जो वेतन वृद्धि के अपवाद प्रदान करता है। नियम स्पष्ट करता है:

“यदि निचले पद पर भी, जूनियर अधिकारी को दिए गए किसी भी अग्रिम वेतन वृद्धि (Advance increments) के कारण वह वरिष्ठ से अधिक वेतन प्राप्त कर रहा था, तो वरिष्ठ अधिकारी के वेतन को बढ़ाने के लिए इस नोट के प्रावधान को लागू करने की आवश्यकता नहीं है।”

DoPT के 2018 के ज्ञापन की व्याख्या: कोर्ट ने पाया कि ट्रिब्यूनल ने 2018 के ज्ञापन पर भरोसा किया था, लेकिन इसके क्लॉज 3(e) और 3(f) की सराहना करने में विफल रहा। कोर्ट ने क्लॉज 3(e) को उद्धृत करते हुए कहा:

“यदि किसी वरिष्ठ को निचले पद पर जूनियर के बाद नियुक्त किया जाता है, जिससे उसे जूनियर से कम वेतन मिलता है, तो ऐसे मामलों में भी वरिष्ठ उच्च पद पर वेतन समानता का दावा नहीं कर सकता है, भले ही उसे उच्च पद पर पहले पदोन्नत किया गया हो।”

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कोर्ट ने माना कि श्री सिंह को उच्च वेतन “उनकी सेवा की लंबाई और प्रतिवादी से पहले वरिष्ठ ऑडिटर के फीडर कैडर पद पर पदोन्नत होने और उनसे वरिष्ठ होने के कारण” मिल रहा था।

पिछले मामले से अंतर: आर. श्रीधरन मामले पर प्रतिवादी की निर्भरता के संबंध में, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उस मामले के तथ्य अलग थे क्योंकि वहां जूनियर को फीडर कैडर में अपने वरिष्ठ की तुलना में कम वेतन मिल रहा था।

निर्णय

हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ट्रिब्यूनल ने प्रतिवादी को वेतन वृद्धि का हकदार मानकर गलती की थी। कोर्ट ने कहा:

“इसलिए, 26.10.2018 के O.M. संख्या 4/3/2017-Estt(Pay-I) के संदर्भ में भी… प्रतिवादी केवल इसलिए वेतन वृद्धि का हकदार नहीं था क्योंकि श्री सिंह, भले ही SO(A) के पद पर बाद में पदोन्नत हुए हों, प्रतिवादी से अधिक वेतन प्राप्त कर रहे थे।”

याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए समय सीमा (Limitation) के मुद्दे पर, कोर्ट ने कहा कि चूंकि प्रतिवादी योग्यता (Merits) के आधार पर राहत का हकदार नहीं है, इसलिए समय सीमा के प्रश्न पर निर्णय लेना आवश्यक नहीं है।

हाईकोर्ट ने रिट याचिका स्वीकार कर ली और ट्रिब्यूनल द्वारा पारित 25 मई, 2023 और 28 नवंबर, 2023 के आदेशों को रद्द कर दिया।

मामले का विवरण:

  • केस शीर्षक: भारत संघ और अन्य बनाम श्री दुर्गा दत्त सैनी
  • केस नंबर: डब्ल्यूपी (सी) 9312/2024 (W.P.(C) 9312/2024)
  • कोर्ट: दिल्ली हाईकोर्ट
  • कोरम: जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन
  • फैसले की तारीख: 09 दिसंबर, 2025
  • साइटेशन: 2025:DHC:11045-DB

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