दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की उस याचिका पर फैसला सुनाने से फिलहाल परहेज़ किया, जिसमें विश्वविद्यालय ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के आदेश को चुनौती दी है। सीआईसी ने अपने आदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक डिग्री से संबंधित विवरण उजागर करने का निर्देश दिया था।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता, जिन्हें दोपहर 2:30 बजे फैसला सुनाना था, आज अदालत में नहीं बैठे। अब इस मामले में निर्णय 25 अगस्त को आने की संभावना है।
यह विवाद एक आरटीआई आवेदन से शुरू हुआ, जिसे नीरज नामक व्यक्ति ने दायर किया था। इसके बाद सीआईसी ने 21 दिसंबर 2016 को आदेश पारित कर 1978 में बीए परीक्षा पास करने वाले सभी विद्यार्थियों के रिकॉर्ड का निरीक्षण करने की अनुमति दी। बताया जाता है कि इसी वर्ष प्रधानमंत्री मोदी ने भी स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। डीयू ने इस आदेश को चुनौती दी थी और 23 जनवरी 2017 को हाईकोर्ट ने सीआईसी के निर्देश पर रोक लगा दी थी।

सुनवाई के दौरान डीयू की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि सीआईसी का आदेश रद्द किया जाना चाहिए, क्योंकि “निजता का अधिकार” जनता के “जानने के अधिकार” पर भारी है। उन्होंने कहा कि डीयू अदालत के समक्ष पीएम मोदी की डिग्री से जुड़े दस्तावेज प्रस्तुत करने को तैयार है, लेकिन उन्हें “अनजान लोगों की जांच-पड़ताल” के लिए सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।
डीयू का यह भी कहना था कि वह छात्रों के रिकॉर्ड को एक विश्वासी जिम्मेदारी (fiduciary capacity) के तहत संजोए रखता है और केवल “जिज्ञासा” के आधार पर, बिना किसी वास्तविक सार्वजनिक हित के, आरटीआई के तहत जानकारी उजागर नहीं की जा सकती।
दूसरी ओर, आरटीआई आवेदक की ओर से पेश वकील ने सीआईसी के आदेश का समर्थन करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के मामले में शैक्षणिक जानकारी का खुलासा एक बड़े सार्वजनिक हित में है और यह आरटीआई कानून की उद्देशिका के अनुरूप है।
हाईकोर्ट ने इस याचिका के साथ-साथ प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यता उजागर करने से संबंधित कई अन्य मामलों पर भी अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इन मामलों का परिणाम निजता के अधिकार और निर्वाचित प्रतिनिधियों की शैक्षणिक जानकारी पर जनता के सूचना के अधिकार के बीच संतुलन पर दूरगामी असर डाल सकता है।
अब अंतिम फैसला 25 अगस्त को आने का इंतज़ार है।