दिल्ली हाईकोर्ट ने मेधा पाटकर की आपराधिक मानहानि में दोषसिद्धि को बरकरार रखा

दिल्ली हाईकोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की उस आपराधिक मानहानि मामले में दोषसिद्धि को बरकरार रखा है, जो दिल्ली के वर्तमान उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने वर्ष 2001 में उनके खिलाफ दर्ज कराया था। न्यायमूर्ति शालिंदर कौर ने इस मामले में पाटकर की वह याचिका भी खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने एक अतिरिक्त गवाह को पेश करने और परखने की अनुमति मांगी थी।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पाटकर यह साबित करने में असफल रहीं कि उनके खिलाफ हुई अदालती प्रक्रिया में कोई त्रुटि या अन्याय हुआ है। इस फैसले के साथ नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता के खिलाफ निचली अदालत की सजा को कानूनी मान्यता मिल गई है।

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हालांकि, हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा पाटकर की प्रोबेशन (परिवीक्षा) की एक शर्त में बदलाव किया है। पहले उन्हें हर तीन महीने में अदालत के समक्ष उपस्थित होना होता था, लेकिन अब अदालत ने उन्हें यह छूट दी है कि वे व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपने वकील के माध्यम से पेश हो सकती हैं।

क्या है मामला?

वर्ष 2001 में विनय कुमार सक्सेना, जो उस समय अहमदाबाद स्थित एनजीओ ‘नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज़’ (NCCL) के प्रमुख थे, ने मेधा पाटकर के खिलाफ आपराधिक मानहानि की शिकायत दर्ज कराई थी। यह शिकायत पाटकर द्वारा जारी एक प्रेस नोट के आधार पर की गई थी, जिसमें उन्होंने सक्सेना को “कायर” और “देशभक्त नहीं” बताया था।

प्रेस नोट में पाटकर ने आरोप लगाया था कि सक्सेना ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की सराहना करते हुए ₹40,000 का चेक दिया था, लेकिन वह चेक बाउंस हो गया और बैंक ने बताया कि संबंधित खाता अस्तित्व में नहीं है। उन्होंने इसे आंदोलन के साथ विश्वासघात और बेइमानी बताया था।

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इन आरोपों को लेकर सक्सेना ने अदालत में दावा किया कि पाटकर के बयान उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने वाले थे और यह आपराधिक मानहानि का मामला बनता है।

अदालत की टिप्पणियां

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया में कोई गलती नहीं पाई गई और न ही पाटकर यह साबित कर पाईं कि उनके साथ कोई अन्याय हुआ है। “अपीलकर्ता यह दिखाने में विफल रहीं कि निचली अदालत की कार्यवाही में कोई प्रक्रियागत त्रुटि या अन्याय हुआ हो,” अदालत ने कहा।

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यह फैसला दो दशकों से चल रहे उस कानूनी विवाद का अहम पड़ाव है, जिसमें एक चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता और वर्तमान में संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति आमने-सामने हैं।

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