दिल्ली हाई कोर्ट ने ट्रांसजेंडर आरक्षण मामले को जनहित याचिका में बदला; सरकार को फटकार लगाते हुए 10 दिन में नीति बनाने का निर्देश

दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि उसने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण लागू नहीं किया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के NALSA निर्णय में स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए थे। अदालत ने इस मुद्दे को जनहित याचिका (PIL) के रूप में लेने का फैसला किया और सरकार को 10 दिनों के भीतर नीति बनाकर ट्रांसजेंडरों को लाभ देने का निर्देश दिया।

मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा कि सरकार को 2021 की अधिसूचना के अनुरूप ट्रांसजेंडर उम्मीदवारों को आयु और योग्यता अंकों में छूट देने का निर्णय करना होगा। अदालत ने यह आदेश एक ट्रांसजेंडर द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट में कोर्ट अटेंडेंट पद पर भर्ती में आरक्षण की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया।

याचिका में विशेष रूप से दिल्ली हाई कोर्ट में विभिन्न पदों पर भर्ती से जुड़ी विज्ञप्ति को चुनौती दी गई थी। हालांकि, पीठ ने कहा कि मामला केवल भर्ती तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ट्रांसजेंडर समुदाय के कल्याण और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन से जुड़ा व्यापक मुद्दा है।

पीठ ने याचिका के दायरे को बढ़ाते हुए इसे जनहित याचिका में परिवर्तित कर दिया और कहा:

READ ALSO  नरक में रह रहे हम चाह कर भी मदद नही कर पा रहे: दिल्ली हाई कोर्ट

“सरकार को नीतिगत निर्णय लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करना होगा और आरक्षण प्रदान करना होगा। हम इस रिट याचिका के दायरे को बढ़ाकर इसे जनहित याचिका के रूप में ले रहे हैं। इस याचिका में उठाए गए मुद्दे मूल रूप से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण से जुड़े हैं, इसलिए इसे PIL के रूप में माना जाता है।”

अदालत ने केंद्र सरकार (सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय) और दिल्ली सरकार (समाज कल्याण विभाग) को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया।

पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के NALSA फैसले में सरकार को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सार्वजनिक रोजगार में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग मानकर आरक्षण देने का निर्देश दिया गया था, लेकिन अब तक कोई नीतिगत निर्णय नहीं लिया गया है।

READ ALSO  हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एन. सेषा सई और जस्टिस मोहम्मद फैज़ आलम खान नियुक्त हुए एनसीएलएटी (NCLAT) के न्यायिक सदस्य

“हालांकि, अब तक सार्वजनिक रोजगार के संदर्भ में ऐसा कोई नीतिगत निर्णय सामने नहीं आया है।”

अदालत को बताया गया कि दिल्ली सरकार ने 2021 में एक अधिसूचना जारी कर ट्रांसजेंडर उम्मीदवारों को आयु सीमा में 5 वर्ष की छूट और योग्यता अंकों में 5 प्रतिशत की छूट देने की घोषणा की थी। लेकिन यह छूट न तो लागू की गई और न ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार आरक्षण प्रदान किया गया।

पीठ ने कहा:

NALSA निर्णय 2014 में दिया गया था, और आज तक सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए जो पर्याप्त कदम उठाए जाने चाहिए थे, वे नहीं उठाए गए। संसद ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाया है और नियम भी बनाए हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि वैधानिक दायित्वों के अनुरूप कल्याणकारी कदम अभी तक नहीं उठाए गए हैं।”

पीठ ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के समावेश और उनकी पूर्ण व प्रभावी भागीदारी के लिए नीतिगत कदम उठाना आवश्यक है।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह को मूल अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए सख्त प्रवर्तन के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए

“हमारा प्रारंभिक मत है कि समावेशन और पूर्ण व प्रभावी भागीदारी के लिए सरकार को NALSA निर्णय में पहले से दिए गए निर्देशों के अनुसार आरक्षण देने के लिए नीतिगत निर्णय लेना चाहिए था।”

अदालत ने नोट किया कि कई ट्रांसजेंडर उम्मीदवार आयु और अंकों में छूट न मिलने के कारण आवेदन नहीं कर पाए। इस पर अदालत ने दिल्ली सरकार को 10 दिनों के भीतर हाई कोर्ट से परामर्श कर उपयुक्त निर्णय लेने का निर्देश दिया। साथ ही कहा कि अगर छूट लागू की जाती है तो आवेदन की अंतिम तिथि एक महीने के लिए बढ़ाई जाए और इसकी व्यापक रूप से जानकारी दी जाए।

“इस संबंध में जानकारी व्यापक रूप से प्रसारित की जाएगी,” अदालत ने कहा।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles