न्यायमूर्ति संजीव नरूला की अध्यक्षता वाली दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से हाल की फिल्मों के प्रमाणन में सुगमता दिशानिर्देशों का पालन न करने के आरोपों को संबोधित करने को कहा है। न्यायालय ने यह सवाल ‘ट्रांसफॉर्मर्स वन’ और ‘देवरा: पार्ट 1’ जैसी फिल्मों के प्रमाणन को रद्द करने का आग्रह करने वाली याचिका के बाद उठाया है, जिनमें कथित तौर पर दृष्टिबाधित और श्रवण बाधित दर्शकों के लिए अनिवार्य सुगमता सुविधाओं का अभाव है।
याचिकाकर्ता मिथिलेश कुमार यादव और सुमन भोकरे, दोनों दृष्टिबाधित हैं, उनका दावा है कि इन फिल्मों में क्लोज्ड कैप्शनिंग (सीसी), ओपन कैप्शनिंग (ओसी) या ऑडियो विवरण (एडी) सुविधाएं शामिल नहीं हैं, जो केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय के दिशानिर्देशों के विपरीत है। 15 मार्च, 2024 से प्रभावी इन दिशानिर्देशों के अनुसार सभी बहुभाषी फिल्मों को कार्यान्वयन के छह महीने के भीतर श्रवण और दृष्टिबाधित लोगों के लिए कम से कम एक सुगमता सुविधा शामिल करनी होगी।
अधिवक्ता शशांक देव सुधी द्वारा प्रस्तुत याचिकाकर्ताओं ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विचाराधीन फ़िल्में 14 सितंबर की समयसीमा के बाद रिलीज़ की गईं, फिर भी इन सुलभता मानकों को पूरा करने में विफल रहीं। इस चूक के कारण याचिकाकर्ताओं के लिए देखने में महत्वपूर्ण चुनौतियाँ पैदा हुईं, जो सिनेमा हॉल में फ़िल्म की सामग्री को पूरी तरह से समझने में असमर्थ थे।
याचिका में विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण विभाग, वायकॉम 18 स्टूडियो, युवासुधा आर्ट्स एलएलपी और एनटीआर आर्ट्स एलएलपी को भी शामिल किया गया है, जिनसे इन आरोपों का जवाब देने के लिए कहा गया है। अदालत ने अगली सुनवाई 5 दिसंबर के लिए निर्धारित की है।