राष्ट्रीय राजधानी में बार-बार आने वाली बाढ़ की समस्या पर गंभीर चिंता जताते हुए, दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को नागरिक एजेंसियों के बीच जिम्मेदारियों के अस्पष्ट बंटवारे से उत्पन्न “भारी भ्रम” की ओर इशारा किया और दिल्ली सरकार से नागरिक प्रशासन और बाढ़ प्रबंधन के केंद्रीकरण पर विचार करने को कहा।
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस मनमीत पी.एस. अरोड़ा की पीठ मानसून में जलभराव, वर्षा जल संचयन और ट्रैफिक जाम से संबंधित दो स्वप्रेरित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने देखा कि दिल्ली नगर निगम (MCD) और दिल्ली जल बोर्ड (DJB) जैसी एजेंसियों के बीच क्षेत्राधिकार के टुकड़ों में बंटे होने से जवाबदेही और रखरखाव में कमी आई है, जिससे शहरी बाढ़ की समस्या बार-बार सामने आ रही है।
कोर्ट ने टिप्पणी की, “स्टॉर्म वॉटर ड्रेन MCD के अधीन हैं, जबकि सीवेज लाइनें DJB के पास हैं। न तो कोई एजेंसी अपने सिस्टम की देखभाल कर रही है, और दोनों एक-दूसरे पर दोष डाल रही हैं।” कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि कई इलाकों में नालियां अतिक्रमण या स्थानीय निवासियों द्वारा बंद कर दी गई हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ रही है।

पीठ ने महारानी बाग की रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) द्वारा दायर एक नई याचिका पर भी विचार किया, जिसमें रिंग रोड के पास जल निकासी में कथित बदलाव के कारण हाल ही में हुए जलभराव की शिकायत की गई थी। जहां लोक निर्माण विभाग (PWD) का कहना था कि जल निकासी के छेद पहले से मौजूद थे और केवल उन्हें खोला गया है, वहीं निवासियों ने विभाग पर स्थिति बिगाड़ने का आरोप लगाया।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि संबंधित सड़क को PWD से MCD को स्थानांतरित कर दिया गया है, जिससे भ्रम और बढ़ गया है। पीठ ने कहा, “नागरिक सेवाओं की वर्तमान स्थिति व्यापक उदासीनता को दर्शाती है, जो MCD, PWD, DJB, DDA और सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग जैसी एजेंसियों के बीच कार्यों के ओवरलैप और समन्वय की कमी से और बिगड़ गई है।”
कोर्ट ने व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए दिल्ली के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि इस आदेश को उचित सरकारी अधिकारियों के समक्ष रखा जाए ताकि शहरी बाढ़ प्रबंधन के लिए केंद्रीकृत प्रशासन की संभावना पर विचार किया जा सके। यदि आवश्यक हो, तो मामला दिल्ली के उपराज्यपाल तक पहुंचाया जा सकता है।
महारानी बाग के विशेष मामले में कोर्ट ने PWD और MCD को निर्देश दिया कि वे 2 अगस्त को एक संयुक्त स्थल निरीक्षण करें और निवासियों के साथ बैठक करें। इसके बाद एक समेकित स्थिति रिपोर्ट दाखिल की जाए।
हाई कोर्ट की ये टिप्पणियां कई निवासियों, जिनमें वकील भी शामिल हैं, की शिकायतों पर आई हैं, जिन्होंने घरों, दफ्तरों और सड़कों में जलभराव की समस्या की ओर ध्यान दिलाया।