दिल्ली हाईकोर्ट ने पीएफआई पर पांच साल के प्रतिबंध के खिलाफ याचिका की ग्राह्यता पर आदेश सुरक्षित रखा

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) द्वारा केंद्र के पांच साल के प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका की ग्राह्यता (maintainability) पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।

मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने पीएफआई और केंद्र सरकार के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद कहा, “हम याचिका की ग्राह्यता पर आदेश सुरक्षित रखते हैं।”

पीएफआई ने 21 मार्च 2024 के यूएपीए (UAPA) ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें 27 सितंबर 2022 को केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखा गया था। संगठन पर आरोप है कि उसके वैश्विक आतंकी संगठनों, खासकर आईएसआईएस से संबंध हैं और वह देश में साम्प्रदायिक नफरत फैलाने की कोशिश कर रहा था।

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केंद्र ने पीएफआई के साथ उसकी संबद्ध और सहयोगी इकाइयों पर भी प्रतिबंध लगाया था, जिनमें रिहैब इंडिया फाउंडेशन (RIF), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI), ऑल इंडिया इमाम्स काउंसिल (AIIC), नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन (NCHRO), नेशनल वीमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल शामिल हैं।

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सितंबर 2022 में हुई देशव्यापी छापेमारी के दौरान पीएफआई से जुड़े 150 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया या गिरफ्तार किया गया था।

सुनवाई के दौरान केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सुनवाई योग्य नहीं है। उनका कहना था कि यूएपीए ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता हाईकोर्ट के ही एक मौजूदा न्यायाधीश ने की थी, इसलिए उस आदेश की समीक्षा हाईकोर्ट द्वारा नहीं की जा सकती।

उन्होंने कहा, “ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता इस हाईकोर्ट के एक मौजूदा जज ने की थी और कोई हाईकोर्ट जज इस न्यायालय के अधीनस्थ नहीं होता। अनुच्छेद 227 केवल अधीनस्थ न्यायालयों पर लागू होता है।”

वहीं, पीएफआई की ओर से दलील दी गई कि याचिका ग्राह्य है। वकील ने कहा कि जब कोई हाईकोर्ट जज यूएपीए ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता करता है तो वह एक ट्रिब्यूनल के रूप में कार्य करता है, न कि हाईकोर्ट के जज के रूप में।

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उन्होंने कहा, “यूएपीए की धारा 5 के तहत गठित यह ट्रिब्यूनल अपनी अलग इकाई है। इसके पास अपनी कार्यप्रणाली, अलग खर्च और विशिष्ट शक्तियां होती हैं। इसलिए इसके आदेश संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायिक समीक्षा योग्य हैं।”

वकील ने यह भी तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल देशभर में जाकर सुनवाई करता है, जबकि हाईकोर्ट की क्षेत्रीय सीमाएं निश्चित होती हैं।

अब हाईकोर्ट यह तय करेगा कि पीएफआई की याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं। आदेश के बाद यह स्पष्ट होगा कि संगठन प्रतिबंध को चुनौती देने के अपने प्रयास को आगे बढ़ा पाएगा या नहीं।

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