दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद साकेत गोखले द्वारा पूर्व राजनयिक लक्ष्मी मुर्देश्वर पुरी के दायर मानहानि मामले में दाखिल की गई लिखित माफी को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि गोखले द्वारा प्रस्तुत हलफनामा पहले दिए गए न्यायिक निर्देशों का पालन नहीं करता।
न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति रेनू भटनागर की खंडपीठ गोखले की उस अपील पर सुनवाई कर रही थी जो उन्होंने 1 जुलाई 2024 के एकल पीठ के आदेश के खिलाफ दाखिल की थी। उस आदेश में गोखले को पुरी के खिलाफ सोशल मीडिया या किसी अन्य ऑनलाइन माध्यम पर कोई भी और टिप्पणी करने से रोका गया था। साथ ही गोखले को सार्वजनिक रूप से माफी मांगने और ₹50 लाख का हर्जाना अदा करने का भी निर्देश दिया गया था।
पीठ ने गोखले के वकील से कहा, “यह स्वीकार्य नहीं है… पहले आप यह हलफनामा वापस लें, फिर हम आपकी बात सुनेंगे।” अदालत ने कहा कि गोखले द्वारा दी गई माफी, अदालत के पूर्व आदेश के अनुसार नहीं थी और दोनों में भिन्नता है।

अब यह मामला 22 जुलाई को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
गोखले की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अमित सिब्बल ने दलील दी कि उनके मुवक्किल ने बिना शर्त माफी देते हुए हलफनामा दाखिल किया है और उसे सार्वजनिक रूप से अपने एक्स (पूर्व में ट्विटर) हैंडल पर भी साझा किया है। हालांकि, लक्ष्मी पुरी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने इस दावे को खारिज किया और कहा कि गोखले ने पहले की अवमानना कार्यवाही के दौरान भी संदेहास्पद आचरण किया है और निर्देशों का पालन नहीं किया।
इससे पहले भी गोखले ने सशर्त माफी की कोशिश की थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था और स्पष्ट रूप से बिना शर्त सार्वजनिक माफी की मांग की थी। इसके बाद उन्होंने 9 मई के एकल पीठ के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें माफी को सोशल मीडिया के साथ-साथ प्रमुख दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित करने का निर्देश दिया गया था। इस आदेश के पालन की अंतिम तिथि 23 मई थी।
गोखले की ओर से कानूनी फर्म करंजावाला एंड कंपनी ने प्रतिनिधित्व किया।
यह विवाद वर्ष 2021 में लक्ष्मी पुरी द्वारा दायर एक मुकदमे से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि गोखले ने उनके जिनेवा स्थित संपत्ति से जुड़े वित्तीय मामलों को लेकर निराधार और मानहानिपूर्ण आरोप लगाए थे। हाईकोर्ट ने 1 जुलाई के अपने फैसले में इन टिप्पणियों को झूठा और अपमानजनक करार देते हुए गोखले पर स्थायी रोक लगा दी थी कि वे इस संबंध में कोई और सामग्री प्रकाशित न करें।
गोखले द्वारा उस फैसले को वापस लेने की याचिका को भी हाईकोर्ट की समन्वित पीठ ने 2 मई को खारिज कर दिया था।