दिल्ली हाईकोर्ट ने अजमेरी गेट पर कथित अवैध निर्माण को ध्वस्त करने की मांग करने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया है, तथा जनहित याचिका प्रारूप के दुरुपयोग के लिए याचिकाकर्ता पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया है।
मामले की अध्यक्षता कर रहे मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला ने याचिका को वास्तविक जनहित के बजाय “बाह्य” उद्देश्यों के लिए बनाया गया “छलावरण” बताया। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की कार्रवाइयां वैध सार्वजनिक चिंताओं को संबोधित करने के न्यायालय के प्रयासों को कमजोर करती हैं।
जनहित याचिका पारंपरिक रूप से भारत में एक महत्वपूर्ण साधन रही है, जिसका उद्देश्य निरक्षरता, गरीबी या अन्य असुविधाओं के कारण हाशिए पर पड़े लोगों को कानूनी आवाज प्रदान करना है। न्यायालय ने इस तंत्र की सुरक्षा में अपनी भूमिका पर प्रकाश डाला, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह वास्तव में जरूरतमंद लोगों की सेवा करे और इसका व्यक्तिगत या गुप्त उद्देश्यों के लिए शोषण न किया जाए।
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