2019 जामिया हिंसा मामला: दिल्ली हाईकोर्ट ने शरजील इमाम पर लगे आरोपों पर रोक लगाने से किया इनकार

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र शरजील इमाम के खिलाफ 2019 जामिया हिंसा मामले में आरोप तय करने के निचली अदालत के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। यह हिंसा दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के पारित होने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया और शाहीन बाग में भड़के व्यापक विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई थी।

जनवरी 2020 में गिरफ्तार किए गए शरजील इमाम पर CAA विरोधी प्रदर्शनों के दौरान सांप्रदायिक तनाव भड़काने का आरोप है। हालांकि, उन्होंने इन आरोपों से इनकार करते हुए दावा किया है कि उनके बयानों के साथ छेड़छाड़ की गई और उन्हें गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया।

इमाम पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई गंभीर धाराओं के तहत आरोप तय किए गए हैं, जिनमें अपराध के लिए उकसाना, आपराधिक साजिश, समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाना, गैरकानूनी जमावड़ा और दंगा शामिल हैं। इसके अलावा, उन पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से संबंधित कानून के तहत भी मामला दर्ज है।

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न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने शरजील इमाम की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें 7 मार्च को साकेत अदालत द्वारा आरोप तय करने के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई थी। इमाम की ओर से वकील अहमद इब्राहिम ने तर्क दिया कि यह आदेश जल्दबाज़ी में पारित किया गया और मामले की अगली सुनवाई 23 अप्रैल को निर्धारित है। हालांकि, न्यायमूर्ति नरूला ने दिल्ली पुलिस से जवाब मिलने तक आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। पुलिस को अगली सुनवाई से पहले, 24 अप्रैल तक अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया गया है।

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7 मार्च के अपने आदेश में साकेत अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने शरजील इमाम को न केवल प्रदर्शन में भाग लेने वाला बताया, बल्कि उन्हें “मुख्य साजिशकर्ता” करार दिया। अदालत ने इमाम के भाषणों को “जहर भरे” और “विभाजनकारी” बताते हुए कहा कि उन्होंने जानबूझकर धार्मिक समुदायों के बीच तनाव पैदा करने और सार्वजनिक शांति भंग करने की मंशा से भाषण दिए।

न्यायालय ने कहा कि इमाम ने दिसंबर 2019 में मुनीरका, निजामुद्दीन, शाहीन बाग और जामिया नगर सहित कई स्थानों पर भाषण दिए, जिनका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को CAA और NRC के खिलाफ भड़काना था।

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इमाम की याचिका, जिसे वकील तालिब मुस्तफा ने भी प्रस्तुत किया, में तर्क दिया गया कि निचली अदालत का आदेश भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (धर्म, जाति आदि के आधार पर वैमनस्य फैलाना) के कानूनी मानकों को पूरा नहीं करता। उनका दावा है कि उनके भाषणों में मुस्लिम समुदाय की एकता की बात करना धार्मिक समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा करने जैसा नहीं माना जा सकता।

अब यह मामला 24 अप्रैल को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है, जहां अदालत दिल्ली पुलिस के जवाब के आधार पर आगे का फैसला करेगी।

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