दिल्ली हाईकोर्ट ने खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर देश का मान बढ़ाने वाले कर्मचारियों के साथ सरकारी अधिकारियों के “असंवेदनशील रवैये” पर कड़ी नाराजगी जताई है। अदालत ने कहा कि ऐसी मानसिकता न केवल खिलाड़ियों का मनोबल तोड़ती है, बल्कि उन नीतियों के उद्देश्य को भी कमजोर करती है, जो खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए बनाई गई हैं।
न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति मधु जैन की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस मामले की सुनवाई के दौरान की जिसमें उत्तरी रेलवे के मुक्केबाज़ अजय कुमार को उनकी पदक विजेता उपलब्धियों के लिए मिलने वाली वेतन वृद्धि हेतु अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
अदालत ने कहा, “यह न्यायालय इस प्रथा की कड़ी निंदा करता है और उम्मीद करता है कि संबंधित अधिकारी भविष्य में उन कर्मचारियों के साथ निष्पक्षता और सम्मान का व्यवहार करेंगे, जो संगठन को पदक दिलाकर गौरवान्वित करते हैं, न कि उन्हें उस मान्यता के लिए अनावश्यक मुकदमेबाज़ी में धकेलें जो उन्होंने पहले ही अर्जित कर ली है।”
 
अदालत ने केंद्र सरकार (रेलवे) की उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) के आदेश को चुनौती दी गई थी। CAT ने रेलवे को अजय कुमार को दो अतिरिक्त वेतनवृद्धियां और उसके बकाया भुगतान देने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट ने रेलवे पर ₹20,000 का जुर्माना भी लगाया।
अजय कुमार को वर्ष 2005 में उत्तरी रेलवे के अंबाला मंडल में खेल कोटा के तहत भर्ती किया गया था और भर्ती के समय उन्हें 17 अग्रिम वेतनवृद्धियां दी गई थीं। वर्ष 2007 में उन्होंने हैदराबाद में आयोजित 53वीं सीनियर नेशनल बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता और मंगोलिया में हुई एशियन बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में कांस्य पदक हासिल किया।
रेलवे ने 2007 में एक नीति जारी की थी जिसके तहत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को अतिरिक्त वेतनवृद्धियां देने का प्रावधान था। लेकिन 2010 में नीति में संशोधन कर इन वेतनवृद्धियों की अधिकतम सीमा पांच तय कर दी गई।
अजय कुमार ने जून 2014 में 2007 की उपलब्धियों के आधार पर दो अतिरिक्त वेतनवृद्धियों के लिए आवेदन किया, जिसे रेलवे ने यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि 2007 की नीति अब लागू नहीं है। इसके बाद उन्होंने CAT में याचिका दायर की, जहां से उन्हें राहत मिली।
हाईकोर्ट ने CAT के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि कुमार का अधिकार 2007 में उनकी उपलब्धियों के साथ ही “सुनिश्चित” हो गया था। बाद की नीति से उसे छीना नहीं जा सकता।
अदालत ने कहा, “5 जून 2015 का अस्वीकृति आदेश 2010 की नीति को गलत तरीके से 2007 की उपलब्धियों पर लागू करने और सीमा प्रावधान को गलत समझने पर आधारित था। अधिकरण ने सही आदेश दिया है कि एक प्रोत्साहन वेतनवृद्धि 1 अप्रैल 2007 से और दूसरी 1 जुलाई 2007 से दी जाए, साथ ही सभी बकाया राशि भी दी जाए।”
पीठ ने कहा कि यह “दुर्भाग्यपूर्ण” है कि एक खिलाड़ी, जिसने देश का नाम रोशन किया, उसे अपने वैध अधिकार के लिए वर्षों तक अदालतों के चक्कर काटने पड़े।
अदालत ने टिप्पणी की, “अपनी उपलब्धियों को मान्यता देने और पुरस्कृत करने के बजाय रेलवे ने उन्हें लंबी मुकदमेबाज़ी में उलझा दिया। यह रवैया उन कर्मचारियों के प्रति खेदजनक असंवेदनशीलता को दर्शाता है जिन्होंने संस्था और राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़ाई है।”
अदालत ने कहा कि किसी कर्मचारी को उसके वैधानिक अधिकारों के लिए अदालत का सहारा लेने पर मजबूर करना “मनमाना और अनुचित” है और भविष्य में अधिकारियों से संवेदनशील व न्यायपूर्ण रवैया अपनाने की अपेक्षा की।


 
                                     
 
        



