दिल्ली हाई कोर्ट ने जाफराबाद हिंसा मामले में केस डायरी संरक्षित रखने का आदेश दिया, पुनर्निर्माण की अर्जी खारिज

दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को 2020 फरवरी में हुए जाफराबाद दंगों से संबंधित केस डायरी को संरक्षित रखने का आदेश दिया, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हुई थी। अदालत ने हालांकि केस डायरी के पुनर्निर्माण की मांग को खारिज कर दिया।

न्यायमूर्ति रवींद्र दुडेगा की एकल पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता देवांगना कलिता की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार किया। उन्होंने कहा, “याचिका आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जहां तक संरक्षित रखने की मांग का सवाल है, दिनांक 2 दिसंबर को पारित अंतरिम आदेश को स्थायी कर दिया जाता है। पुलिस डायरी के पुनर्निर्माण की मांग को अस्वीकार किया जाता है।” विस्तृत आदेश बाद में उपलब्ध होगा।

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यह याचिका कलिता द्वारा दायर उस अपील से उत्पन्न हुई थी जिसमें उन्होंने 6 नवंबर को पारित निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। उस आदेश में अदालत ने उनकी अर्जी पर सुनवाई से इनकार कर दिया था। कलिता और छात्रा कार्यकर्ता नताशा नरवाल ने आरोप लगाया था कि दिल्ली पुलिस ने केस डायरी में दर्ज गवाहों के बयान से छेड़छाड़ की और उन्हें पूर्व-तिथि में दर्ज दिखाया।

पहले न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी उद्भव कुमार जैन ने माना था कि कलिता के तर्कों में दम है, लेकिन इस स्तर पर मजिस्ट्रेट अदालत ऐसे आरोपों की सत्यता की जांच नहीं कर सकती। 2 दिसंबर, 2024 को हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी कर पुलिस को केस डायरी संरक्षित रखने का निर्देश दिया था, जिसे अब स्थायी कर दिया गया है।

यह मामला 26 फरवरी, 2020 को दर्ज एफआईआर से शुरू हुआ था। इसमें कलिता, नरवाल, पूर्व जेएनयू शोध छात्र उमर खालिद और छात्रा कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा सहित अन्य पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने शांतिपूर्ण प्रदर्शन के नाम पर जाफराबाद में अशांति फैलाने की साजिश रची।

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कलिता को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन सितंबर 2020 में उन्हें जमानत मिल गई। इस आदेश को 18 जून, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।

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