दिल्ली हाईकोर्ट ने महज 21 ग्राम वजन की सोने की अंगूठी को जब्त करने और उसे रोके रखने के मामले में सीमा शुल्क (Customs) विभाग की कड़ी आलोचना की है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि ऐसे मामले यह दर्शाते हैं कि कैसे विभाग के संसाधनों को “पूरी तरह से बर्बाद” किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति शैल जैन की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को बिना किसी वेयरहाउसिंग शुल्क (warehousing charges) के उनकी ज्वैलरी तुरंत लौटाने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने विभाग पर 5,000 रुपये का जुर्माना (cost) भी लगाया है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला याचिकाकर्ता सायरा से जुड़ा है, जिन्होंने अपनी 21 ग्राम सोने की अंगूठी की रिहाई के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। याचिकाकर्ता 14 जुलाई 2024 को दुबई से दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट पहुंची थीं, जहां कस्टम अधिकारियों ने उनकी अंगूठी जब्त कर ली थी।
याचिकाकर्ता का कहना था कि जब्त की गई अंगूठी उनके बहनोई (brother-in-law) द्वारा दिया गया एक उपहार थी और यह उनका व्यक्तिगत आभूषण है। इस मामले में सक्षम प्राधिकारी ने 21 जुलाई 2025 को एक ‘अधिनिर्णय आदेश’ (Adjudication Order) पारित कर अंगूठी को बिना शर्त छोड़ने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद, जब अंगूठी वापस नहीं मिली, तो याचिकाकर्ता को विवश होकर रिट याचिका दायर करनी पड़ी।
दलीले और सुनवाई
सुनवाई के दौरान, सीमा शुल्क विभाग के वकील पीयूष बेरीवाल ने दलील दी कि याचिकाकर्ता का यह कथन गलत है कि विभाग ने अधिनिर्णय आदेश के खिलाफ कोई अपील दायर की है।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को सूचित किया कि उन्हें 9 दिसंबर, 2025 को ही एक ईमेल प्राप्त हुआ है, जिसमें बताया गया है कि विभाग ने 21 जुलाई, 2025 के रिहाई आदेश को स्वीकार कर लिया है। याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि जब्ती के दौरान उनसे यह कहलवाया गया था कि वह सीमा शुल्क और जुर्माना भरने को तैयार हैं और उन्हें कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) नहीं चाहिए।
अधिनिर्णय आदेश (Adjudication Order) के निष्कर्ष
कोर्ट ने सहायक सीमा शुल्क आयुक्त (Assistant Commissioner of Customs) द्वारा पारित 21 जुलाई, 2025 के आदेश का अवलोकन किया। आदेश में दर्ज था कि जब्त सामान का मूल्य 1,42,775 रुपये है, जो 10 लाख रुपये से कम है।
अधिकारी ने अपने आदेश में डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस बनाम पुष्पा लेखुमल तोलानी (2017) और मखिंदर चोपड़ा बनाम कमिश्नर ऑफ कस्टम्स (2025) जैसे फैसलों का हवाला देते हुए निष्कर्ष निकाला था कि सोने की अंगूठी “भारतीय मूल का व्यक्तिगत आभूषण” है और इसे जब्त नहीं किया जा सकता।
आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था:
“मैं पाता हूं कि हिरासत में ली गई सोने की अंगूठी जब्ती के लिए उत्तरदायी नहीं है क्योंकि यह यात्री का भारतीय मूल का व्यक्तिगत आभूषण है (और आयातित नहीं है)। इसे बिना किसी शुल्क/जुर्माने के भुगतान के रिहा किया जा सकता है क्योंकि यह स्थापित है कि ‘व्यक्तिगत आभूषण’ यात्री के ‘व्यक्तिगत सामान’ (personal effects) में शामिल है।”
कोर्ट की टिप्पणियां और फैसला
हाईकोर्ट ने इतनी कम मात्रा में सोने को हिरासत में लेने पर कड़ी नाराजगी जताई। पीठ ने टिप्पणी की:
“यह मामला दिखाता है कि कैसे सीमा शुल्क विभाग के संसाधनों को ऐसे मामलों में पूरी तरह से बर्बाद किया जा रहा है।”
कोर्ट ने आगे कहा:
“इस कोर्ट की राय में, सबसे पहले तो सोने की अंगूठी को हिरासत में लेना ही सीमा शुल्क अधिकारियों द्वारा पूरी तरह से गलत था। इसके अलावा, व्यक्तिगत सामान के मामले में, जैसे कि पहनी जाने वाली अंगूठी या उपहार में मिली अंगूठी, जब वस्तु का वजन इतना कम हो, तो उसे हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिए था।”
पीठ ने इसे “काफी अनुचित” माना कि जुलाई 2025 में रिहाई का आदेश पारित होने के बावजूद याचिकाकर्ता को अपनी 21 ग्राम की अंगूठी वापस पाने के लिए रिट याचिका दायर करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि अधिनिर्णय आदेश को तत्काल प्रभाव में लाया जाए और याचिकाकर्ता को उनकी अंगूठी वापस दी जाए। कोर्ट ने विशेष रूप से स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता से कोई भी वेयरहाउसिंग शुल्क नहीं लिया जाएगा। इसके अतिरिक्त, विभाग को याचिकाकर्ता को 5,000 रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया गया है। आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए एक नोडल अधिकारी भी नियुक्त किया गया है।
केस डिटेल्स:
केस टाइटल: सायरा बनाम कमिश्नर ऑफ कस्टम्स
केस नंबर: W.P.(C) 18588/2025
कोरम: न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति शैल जैन
याचिकाकर्ता के वकील: डॉ. आशुतोष और सुश्री फातिमा, एडवोकेट्स
प्रतिवादी के वकील: श्री पीयूष बेरीवाल, एडवोकेट

