दिल्ली हाईकोर्ट ने एक यात्री द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें भारतीय रेलवे से चोरी हुए बैग के लिए मुआवज़े की मांग को अस्वीकार कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक चोरी और रेलवे कर्मियों की लापरवाही के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध साबित नहीं होता, तब तक बुक न किए गए निजी सामान की हानि के लिए रेलवे को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
मामला क्या था?
याचिकाकर्ता शैलेन्द्र जैन ने 16 जनवरी 2013 को नई दिल्ली से नागपुर के लिए 3rd AC कोच में यात्रा की थी। भोपाल स्टेशन से ट्रेन के रवाना होने के बाद उन्हें पता चला कि उनका बैकपैक चोरी हो गया है, जिसमें लैपटॉप, कैमरा, एटीएम कार्ड्स और अन्य कीमती सामान था, जिसकी कीमत ₹84,450 आंकी गई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि कोच अटेंडेंट ने सहयोग नहीं किया, कंडक्टर नदारद था और कोच में कोई आरपीएफ या जीआरपी स्टाफ मौजूद नहीं था। इसके बाद नागपुर जीआरपी में आईपीसी की धारा 379 के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई।
उन्होंने दिल्ली जिला उपभोक्ता फोरम में ₹1,00,000 मुआवज़े की मांग करते हुए शिकायत दर्ज कराई। जिला फोरम ने रेलवे को सेवा में कमी के लिए दोषी मानते हुए ₹5,000 का मुआवज़ा और वाद व्यय देने का आदेश दिया। बाद में राज्य उपभोक्ता आयोग (SCDRC) ने इसे बढ़ाकर ₹1,00,000 कर दिया और रेलवे कर्मियों की घोर लापरवाही का हवाला दिया।

इसके खिलाफ भारत सरकार ने NCDRC में अपील की, जिसने 29 अगस्त 2024 को SCDRC का आदेश रद्द कर दिया और मूल शिकायत को खारिज कर दिया। इसके बाद शैलेन्द्र जैन ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया।
पक्षों की दलीलें और कानूनी विश्लेषण
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि रेलवे अधिकारियों ने रेल मंत्रालय की दिनांक 11.09.1998 की अधिसूचना का उल्लंघन किया, जिसमें कंडक्टर और अटेंडेंट को ट्रेन चलते समय कोच के दरवाज़े बंद रखने और रात में लॉक करने का निर्देश है। उन्होंने Northern Railway vs. Balbir Singh और Union of India vs. Daya Shankar Tiwari जैसे पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए इसे सेवा में कमी बताया।
रेलवे की ओर से दलील दी गई कि:
- मूल शिकायत में दरवाजे खुले होने या अनधिकृत प्रवेश का कोई आरोप नहीं था।
- चोरी हुआ बैग अनबुक्ड लगेज था, और रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 100 और संबंधित टैरिफ नियमों के तहत रेलवे ऐसी स्थिति में ज़िम्मेदार नहीं है।
- सीटों के नीचे सामान बांधने के लिए आयरन रिंग्स जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग यात्रियों को करना चाहिए।
- याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रहे कि उनके पास कथित रूप से चोरी हुआ सामान वास्तव में था।
कोर्ट की टिप्पणियाँ और निर्णय
न्यायमूर्ति रविंद्र दूदेजा ने कहा कि उपभोक्ता शिकायत में दरवाज़े खुले होने या अनधिकृत प्रवेश की कोई ठोस बात नहीं कही गई थी। कोर्ट ने यह कहा:
“केवल कंडक्टर की गैर-मौजूदगी को सेवा में कमी नहीं माना जा सकता, जब तक यह विशेष रूप से साबित न हो कि उसने दरवाज़े बंद रखने की अपनी ड्यूटी का पालन नहीं किया।”
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के Station Superintendent vs. Surender Bhola [2023 SCC OnLine SC 741] निर्णय का हवाला देते हुए कहा:
“यदि यात्री खुद अपने सामान की सुरक्षा नहीं कर सकता, तो रेलवे को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।”
अंततः कोर्ट ने माना कि चोरी और रेलवे की लापरवाही के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, और NCDRC के निर्णय को सही ठहराया। इसलिए, याचिका खारिज कर दी गई।
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि यात्रा के दौरान व्यक्तिगत सामान की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी मुख्य रूप से यात्री की होती है, विशेषकर जब वह सामान रेलवे के साथ घोषित या बुक नहीं किया गया हो।