दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि यदि किसी दोषी की सजा के खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, तब भी जेल प्रशासन उसकी पैरोल या फरलो की अर्जी पर विचार कर सकता है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि दिल्ली जेल नियमावली में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो सुप्रीम कोर्ट में अपील लंबित होने की स्थिति में पैरोल या फरलो पर विचार करने से रोकता हो। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में राहत देना या न देना पूरी तरह तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
अदालत ने कहा, “यदि सुप्रीम कोर्ट में किसी विशेष मामले की सुनवाई चल रही है, तो यह एक अलग प्रश्न है कि जेल प्रशासन को पैरोल या फरलो देना चाहिए या नहीं। इसका निर्णय प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर ही लिया जाएगा।”

जहां पैरोल किसी विशेष आपात स्थिति में दी जाती है, वहीं फरलो एक निश्चित अवधि की सजा पूरी करने के बाद, बिना किसी विशेष कारण के भी दी जा सकती है।
हाईकोर्ट ने यह भी माना कि ऐसी स्थिति भी हो सकती है जब सुप्रीम कोर्ट ने किसी दोषी को जमानत या सजा निलंबित करने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया हो। ऐसे मामलों में, अदालत ने कहा, “जेल प्रशासन को गहन जांच करनी होगी कि क्या पैरोल या फरलो देना उपयुक्त है।”
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जेल प्रशासन को यह अधिकार होना कि वह अर्जी पर विचार कर सकता है, इसका यह मतलब नहीं कि हर मामले में पैरोल या फरलो देना अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत या सजा निलंबन न दिए जाने जैसे कारक भी विचार में लिए जाएंगे।
खंडपीठ ने कहा, “सिर्फ इसलिए कि कोई आपराधिक अपील या विशेष अनुमति याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, यह यह नहीं माना जा सकता कि दोषी को फरलो या पैरोल नहीं मिल सकती। हर मामले को नियमों के अनुसार योग्यता के आधार पर तय किया जाएगा और हाईकोर्ट के समक्ष अनुच्छेद 226 के तहत उसकी न्यायिक समीक्षा भी संभव होगी।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सजा निलंबन या जमानत देने की शक्ति अलग है, जबकि पैरोल और फरलो देने का निर्णय जेल नियमों के अनुसार प्रशासनिक स्तर पर लिया जा सकता है।
यह फैसला अदालत ने एक साथ दायर कई याचिकाओं की सुनवाई करते हुए दिया, जिससे इस कानूनी मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट हो गई कि सुप्रीम कोर्ट में अपील लंबित होने पर भी दोषी पैरोल या फरलो के लिए आवेदन कर सकता है।