दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान आईबी कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या के मामले में पूर्व आप पार्षद ताहिर हुसैन की नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा है।
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने पुलिस को नोटिस जारी करते हुए तीन हफ्तों में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई जुलाई में तय की।
हुसैन की ओर से अधिवक्ता तारा नरूला द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि वह पहले ही पांच साल से अधिक समय से हिरासत में हैं और ट्रायल कोर्ट की पूरी कोशिशों के बावजूद मुकदमे के शीघ्र निष्कर्ष की संभावना नहीं है। याचिका में यह भी कहा गया है कि ट्रायल कोर्ट ने 12 मार्च को उनकी जमानत याचिका को गलत तरीके से खारिज कर दिया, जबकि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है।
याचिका में कहा गया, “आवेदक पर आरोप केवल भड़काने का है। पांच कथित प्रत्यक्षदर्शियों में से तीन ने साफ कहा है कि उन्होंने ताहिर हुसैन को घटनास्थल पर नहीं देखा। शेष दो ‘चांस विटनेस’ के बयान आपस में विरोधाभासी हैं और उनमें गंभीर विरोधाभास व सुधार हैं, जिससे उनकी विश्वसनीयता खत्म हो जाती है।”
पुलिस गवाहों के बयानों को भी याचिका में अविश्वसनीय बताया गया है। साथ ही कहा गया कि जिस शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी, शिकायतकर्ता ने उस शिकायत की पहचान से इनकार कर दिया है, जिससे अभियोजन पक्ष की कहानी पर गंभीर सवाल उठते हैं।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 25 फरवरी 2020 को अंकित शर्मा के लापता होने की सूचना उनके पिता रविंद्र कुमार ने दयालपुर थाने को दी थी। अगले दिन कुछ स्थानीय लोगों से उन्हें पता चला कि एक व्यक्ति की हत्या कर उसे चांद बाग पुलिया की मस्जिद से खजूरी खास नाले में फेंक दिया गया। बाद में अंकित शर्मा का शव खजूरी खास नाले से बरामद हुआ, जिस पर 51 चोटों के निशान थे।
ताहिर हुसैन इस मामले में आरोपी हैं। अभियोजन पक्ष का कहना है कि हुसैन और चार अन्य आरोपी उस हिंसक भीड़ का हिस्सा थे, जो दंगे और आगजनी की घटनाओं में शामिल थी, जिसमें शर्मा की जान गई।
गौरतलब है कि 24 फरवरी 2020 को नागरिकता कानून (CAA) के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा भड़क उठी थी, जिसने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक रूप ले लिया। इस हिंसा में 53 लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए।