मानहानि मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना को नोटिस जारी किया, मेधा पाटकर ने नए गवाह को शामिल करने की मांग की

दिल्ली हाईकोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर द्वारा नए गवाह को शामिल करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना को नोटिस जारी किया है। यह याचिका वर्ष 2000 से लंबित मानहानि मामले से जुड़ी है, जिसमें सक्सेना पर गुजरात में एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) के प्रमुख रहते हुए पाटकर के खिलाफ आपत्तिजनक विज्ञापन प्रकाशित करने का आरोप है।

न्यायमूर्ति शलिंदर कौर ने पाटकर की उस याचिका पर सक्सेना से जवाब मांगा है, जिसमें उन्होंने 18 मार्च को ट्रायल कोर्ट द्वारा नए गवाह को पेश करने की मांग खारिज किए जाने को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने हालांकि ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर फिलहाल रोक नहीं लगाई है, जहां जल्द ही सक्सेना का बयान दर्ज किया जाना है। मामले की अगली सुनवाई 20 मई को तय की गई है।

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ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मामले के इस अंतिम चरण में नए गवाह को शामिल करना न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक देरी का कारण बन सकता है, क्योंकि यह केस 20 वर्षों से अधिक समय से लंबित है और सूचीबद्ध सभी गवाहों की गवाही पहले ही हो चुकी है।

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पाटकर के वकीलों ने नंदिता नारायण नामक नए गवाह को शामिल करने की प्रासंगिकता पर जोर देते हुए कहा कि उनकी गवाही मामले के तथ्यों को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। वहीं, सक्सेना की ओर से पेश वकील ने इस याचिका का विरोध करते हुए कहा कि इतने विलंब से गवाह को पेश करना सिर्फ कार्यवाही को अनावश्यक रूप से लंबा खींचने और न्याय की प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयास है।

गौरतलब है कि मेधा पाटकर और वी.के. सक्सेना के बीच यह कानूनी लड़ाई लंबे समय से विवादों और आरोप-प्रत्यारोपों से भरी रही है। जहां एक ओर पाटकर ने सक्सेना के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया है, वहीं दूसरी ओर सक्सेना ने 2001 में पाटकर के खिलाफ दो आपराधिक मुकदमे दर्ज कराए थे। ये मुकदमे एक टीवी इंटरव्यू और प्रेस बयान में उनके खिलाफ की गई कथित आपत्तिजनक टिप्पणियों को लेकर थे।

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इस मामले में एक बड़ा घटनाक्रम तब सामने आया जब 1 जुलाई 2024 को दिल्ली की एक अदालत ने मेधा पाटकर को पांच महीने की सादी कैद की सजा सुनाई थी।

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