भूमि के बदले नौकरी घोटाला: लालू प्रसाद यादव ने CBI FIR रद्द करने की मांग की, कहा ‘बिना मंजूरी जांच गैरकानूनी’

राजद सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई की लैंड फॉर जॉब्स घोटाले से जुड़ी एफआईआर को रद्द करने की मांग की। उनका तर्क है कि यह मामला भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PC Act) के तहत अनिवार्य मंजूरी लिए बिना दर्ज किया गया, जिससे पूरी जांच अवैध हो जाती है।

न्यायमूर्ति रवींदर दुडेचा की पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, “सीबीआई ने पीसी एक्ट के तहत अनिवार्य मंजूरी लिए बिना एफआईआर दर्ज की। इससे पूरी जांच गैरकानूनी हो जाती है। मंजूरी के अभाव में जांच शुरू ही नहीं हो सकती थी। पूरा कार्यवाही गलत है।”

सिब्बल ने यह भी कहा कि जब कथित अपराध हुआ, उस समय यादव रेलवे मंत्री के पद पर कार्यरत थे और ऐसे में मंजूरी जरूरी थी। उन्होंने कहा, “हम केवल मंजूरी की कमी को चुनौती दे रहे हैं। एफआईआर शुरू ही नहीं हो सकती थी। हम केवल आरसी (पंजीकृत केस) को हटवाना चाहते हैं।”

Video thumbnail

सीबीआई के वकील ने यादव पर आरोप लगाया कि वह जानबूझकर निचली अदालत में आरोप निर्धारण पर अपनी बहस पूरी नहीं कर रहे हैं। “बहस कल पूरी होगी, लेकिन जानबूझकर ट्रायल कोर्ट में अपनी दलीलें अधूरी छोड़ते हैं,” सीबीआई पक्ष ने कहा।

READ ALSO  Reserved category candidates who are selected on the basis of merit should be adjusted against Open Category: SC

न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि मंजूरी का अभाव “भले ही स्वीकार कर लिया जाए, यह केवल पीसी एक्ट के अपराधों पर लागू होगा, आईपीसी पर नहीं।” अदालत अब इस मामले की सुनवाई 25 सितंबर को करेगी।

यह केस 2004 से 2009 के बीच लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री कार्यकाल के दौरान जबलपुर स्थित वेस्ट सेंट्रल जोन रेलवे में ग्रुप-डी नियुक्तियों से जुड़ा है। आरोप है कि उम्मीदवारों को नौकरी दिलाने के बदले उनकी जमीन के टुकड़े यादव के परिवार या सहयोगियों को हस्तांतरित किए गए।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक अनियमितताओं के बीच संपूर्ण चयन प्रक्रिया को रद्द करने के लिए अहम सिद्धांत तय किए

सीबीआई ने 18 मई 2022 को यह मामला दर्ज किया था, जिसमें यादव, उनकी पत्नी, दो बेटियों सहित अज्ञात सरकारी और निजी व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया है।

यादव ने अपनी याचिका में कहा कि यह एफआईआर लगभग 14 साल की देरी के बाद दर्ज की गई है, जबकि पहले की जांच में सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी।

यादव ने कहा कि यह कार्रवाई “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” है और उन्हें “राजनीतिक प्रतिशोध” के तहत एक “गैरकानूनी और प्रेरित जांच” का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि बिना आवश्यक मंजूरी के जांच शुरू करना “अधिकार-क्षेत्रीय त्रुटि” है, जिससे कार्यवाही शुरू से ही अवैध हो जाती है।

READ ALSO  ब्रेकिंग: देशभर के पाँच हाईकोर्ट में 16 जज नियुक्त, केंद्र सरकार ने जारी की अधिसूचना
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles