दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के बार-बार तबादले पर डीएचसीबीए की चिंता, पारदर्शिता की मांग

दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (डीएचसीबीए) ने न्यायाधीशों के “चौंकाने वाले और बार-बार होने वाले तबादलों” पर चिंता जताते हुए सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को पत्र लिखा है। एसोसिएशन ने नियुक्तियों और तबादलों की प्रक्रिया में “अधिक पारदर्शिता” की मांग की है।

पत्र में बार ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट बार के सदस्यों के साथ न्यायाधीशों की नियुक्ति में उपेक्षा का “प्रचलित धारणा” बन गई है। इसे “दुर्भाग्यपूर्ण” बताते हुए बार ने कहा कि इससे न्यायपालिका में विश्वास कमजोर पड़ सकता है।

एसोसिएशन ने कहा कि हाल के महीनों में दिल्ली हाईकोर्ट से अन्य राज्यों में और अन्य राज्यों से दिल्ली में कई न्यायाधीशों के तबादले हुए हैं। “इन तबादलों ने न केवल संस्थान के भीतर, बल्कि बार के सदस्यों के बीच भी असहजता पैदा कर दी है,” पत्र में कहा गया।

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डीएचसीबीए ने बताया कि वर्तमान में दिल्ली हाईकोर्ट की लगभग एक-तिहाई पीठ अन्य राज्यों से आए न्यायाधीशों से बनी है। “बार अन्य राज्यों से आने वाले न्यायाधीशों का स्वागत करता है, लेकिन स्थानीय सदस्यों की उपेक्षा होने की धारणा वकीलों का मनोबल गिरा सकती है और नियुक्ति-तबादले की स्थापित प्रक्रिया पर विश्वास घटा सकती है,” पत्र में कहा गया।

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एसोसिएशन ने कहा कि नियुक्ति और तबादले का अधिकार भले ही “पूर्णतः” कॉलेजियम के पास हो, लेकिन न्यायपालिका के संचालन में बार भी बराबर का हितधारक है। “फिर भी अज्ञात कारणों से बार को इन महत्वपूर्ण निर्णयों से अंधेरे में रखा जाता है,” पत्र में लिखा गया।

डीएचसीबीए ने जोर देकर कहा कि व्यापक परामर्श और पारदर्शिता से न केवल वकीलों का विश्वास मजबूत होगा बल्कि जनता का भी न्यायपालिका में भरोसा बढ़ेगा।

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इन चिंताओं की गूंज हाल ही में वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पहवा के पत्र में भी सुनाई दी। उन्होंने 28 अगस्त को सीजेआई को लिखे पत्र में न्यायमूर्ति अरुण मोंगा और न्यायमूर्ति तारा वितस्ता गंजू के राजस्थान और कर्नाटक हाईकोर्ट में तबादले की सिफारिश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था। पहवा ने आशंका जताई कि इस फैसले में “असत्यापित रिपोर्टों” का प्रभाव पड़ा हो सकता है।

उन्होंने लिखा, “यह बेहद चिंताजनक है कि न्यायाधीशों के आधिकारिक कर्तव्यों या न्यायिक कार्य से असंबंधित असत्यापित रिपोर्टों ने उनके तबादले के प्रस्ताव को प्रभावित किया हो सकता है। न्यायिक स्वतंत्रता और निरंतरता को सुरक्षित रखा जाना चाहिए।”

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