दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि अजमेर शरीफ दरगाह के भीतर और बाहर स्थित किसी भी ढांचे के ध्वस्तीकरण या हटाए जाने जैसे कदम उठाने से पहले सभी प्रभावित पक्षों को सुनवाई का उचित अवसर दिया जाए।
जस्टिस सचिन दत्ता की पीठ ने सोमवार को यह निर्देश देते हुए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से अजमेर शरीफ दरगाह कमेटी के गठन की प्रक्रिया में तेजी लाने को भी कहा। अदालत ने स्पष्ट किया कि पहले दिए गए तीन माह के समय को अंतिम दिन तक लंबित रखने का आशय नहीं है, बल्कि कमेटी के गठन की कार्रवाई “यथाशीघ्र” पूरी की जानी चाहिए।
अदालत ने कहा कि 22 नवंबर के आदेश के आधार पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही बिना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए नहीं की जा सकती। प्रत्येक संबंधित पक्ष को सुनवाई का अवसर दिया जाए और उसके बाद ही कारणयुक्त आदेश जारी किया जाए।
केंद्र के वकील से अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा—“आप ऐसे ही बुलडोजर लेकर नहीं जा सकते और सब कुछ मिटा नहीं सकते।”
यह निर्देश उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आया जो सैयद मेहराज मियां, जो दरगाह के ‘खादिम’ हैं, द्वारा दर्ज की गई थी। याचिका में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें दरगाह परिसर में अवैध और अनधिकृत कब्जों को हटाने की कार्रवाई का निर्देश दिया गया था।
केंद्र के वकील ने कहा कि दरगाह के आंगन में अवैध ढांचे और अस्थायी कब्जे बनाए गए हैं, जहां लोग टेबल-कुर्सियां लगाकर सामान बेचते हैं और इससे श्रद्धालुओं को बाधा होती है। उन्होंने आगामी महीने में बड़े पैमाने पर होने वाले धार्मिक आयोजन का जिक्र करते हुए बताया कि लगभग पांच लाख लोग दरगाह पहुंचने की संभावना है, जिससे सुरक्षा चिंता बढ़ जाती है।
अदालत ने जवाब दिया कि सुरक्षा महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि सुनवाई के अधिकार की अनदेखी की जाए। न्यायाधीश ने कहा, “अगर आप कोई निर्णायक कदम उठाना चाहते हैं, तो संबंधित व्यक्ति को व्यक्तिगत नोटिस देना होगा।”
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि मंत्रालय द्वारा उठाया गया कदम बड़े पैमाने पर लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन है और यह बिना सुनवाई के प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए की जा रही प्रशासनिक कार्रवाई है।
अदालत ने यह भी याद दिलाया कि 6 नवंबर को केंद्र को दरगाह कमेटी के गठन की प्रक्रिया तेज करने का निर्देश पहले ही दिया जा चुका है। न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि सरकार इस प्रक्रिया पर “बैठ नहीं सकती।”
अगली सुनवाई के लिए मामला 23 फरवरी को सूचीबद्ध किया गया है।

