नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को मानहानि मामले में एक लाख रुपये के जुर्माने की अदायगी स्थगित करने के लिए सत्र न्यायालय का रुख करने की सलाह दी है। यह मामला दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा 23 साल पहले तब दायर किया गया था जब वह गुजरात में एक एनजीओ के प्रमुख थे।
सत्र न्यायालय ने 8 अप्रैल को 70 वर्षीय पाटकर को मानहानि का दोषी ठहराते हुए उन्हें कारावास की बजाय “सदाचार की प्रोबेशन” पर रिहा कर दिया था, बशर्ते कि वह एक लाख रुपये का जुर्माना अदा करें। प्रोबेशन का तात्पर्य है दोषसिद्धि के बाद कारावास के बजाय अच्छे आचरण के लिए बांड पर रिहाई।
दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति शालिंदर कौर ने पाटकर की उस याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया जिसमें उन्होंने ट्रायल कोर्ट को जुर्माने की अदायगी स्थगित करने का निर्देश देने की मांग की थी। न्यायमूर्ति कौर ने कहा, “आप पहले ट्रायल कोर्ट का आदेश मानें, उसके बाद ही मैं आपकी याचिका पर विचार करूंगी। अंतिम दिन अदालत में मत आइए।”

अब यह मामला बुधवार को सत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होगा, जहां पाटकर को प्रोबेशन बांड जमा कराना है और जुर्माना अदा करना है। हाईकोर्ट ने पाटकर के वकील की दलीलें सुनने के बाद स्पष्ट किया कि इस विषय को ट्रायल कोर्ट द्वारा विधिक प्रक्रिया के अनुसार ही निपटाया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 19 मई की तारीख तय की है, जब वह 2 अप्रैल को सत्र न्यायालय द्वारा उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखने के आदेश को चुनौती देने वाली पाटकर की याचिका पर विचार करेगी। उल्लेखनीय है कि 1 जुलाई 2024 को मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उन्हें आईपीसी की धारा 500 के तहत पांच महीने की साधारण कैद और 10 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।
बाद में सत्र न्यायालय ने इस आदेश को संशोधित करते हुए उन्हें प्रोबेशन पर रिहा कर दिया और जुर्माना घटाकर एक लाख रुपये कर दिया, जिसे वी.के. सक्सेना को मुआवजे के रूप में अदा किया जाना है। यह राशि कानून के अनुसार जुर्माने के रूप में वसूल की जाएगी।