एक महत्वपूर्ण फैसले में, दिल्ली हाईकोर्ट ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में ‘शिव लिंग’ के बारे में सोशल मीडिया पर की गई उनकी विवादास्पद टिप्पणी को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. रतन लाल के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करने से इनकार कर दिया है। न्यायालय का यह फैसला 17 दिसंबर को आया, जिसमें न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह मामले की सुनवाई कर रहे थे।
मई 2022 में दर्ज की गई एफआईआर में भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए और 295ए लगाई गई, जो क्रमशः विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से दुर्भावनापूर्ण कृत्यों से संबंधित हैं। न्यायमूर्ति सिंह ने अपने फैसले में कहा कि डॉ. लाल की पोस्ट ने प्रथम दृष्टया सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ा और इसका उद्देश्य समाज के एक बड़े वर्ग की भावनाओं को ठेस पहुंचाना था।
न्यायमूर्ति सिंह ने ‘शिव लिंग’ से जुड़े महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक अर्थों पर प्रकाश डाला, तथा रेखांकित किया कि किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह कितना भी बौद्धिक या शैक्षणिक क्यों न हो, इस तरह की टिप्पणी करने की स्वतंत्रता नहीं है, क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अपनी सीमाएँ होती हैं।
अदालत ने कहा, “डॉ. लाल द्वारा पोस्ट की गई सामग्री ने न केवल शिकायतकर्ता की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाई, बल्कि दो अलग-अलग समुदायों के बीच घृणा, दुश्मनी और सांप्रदायिक तनाव को भी भड़काया।” निर्णय ने इस बात पर जोर दिया कि एफआईआर दर्ज होने के बाद भी डॉ. लाल द्वारा इस विषय पर लगातार चर्चा करना, जानबूझकर और आपराधिक इरादे की ओर इशारा करता है, जिसके लिए आरोपित धाराओं को लागू किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, अदालत ने इतिहासकार और शिक्षक के रूप में डॉ. लाल की भूमिका के साथ आने वाली जिम्मेदारी पर टिप्पणी की, तथा कहा कि उन्हें अपने सार्वजनिक बयानों के साथ अधिक सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि उनके संभावित प्रभाव और प्रभाव हैं।
अदालत ने कहा, “सिर्फ़ यह तथ्य कि पोस्ट के बाद कोई अशांति या असामंजस्य नहीं फैला, डॉ. लाल के कार्यों की आपराधिकता को कम नहीं करता है, जिन्हें सामाजिक शांति और सद्भाव को बाधित करने के इरादे और क्षमता के साथ अंजाम दिया गया था।”