दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि आतंकवाद से जुड़े मामलों में केवल लंबी अवधि तक जेल में रहने को जमानत का आधार नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि ऐसे अपराध देश की सुरक्षा और एकता पर गंभीर प्रभाव डालते हैं। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की पीठ ने लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और 26/11 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद से जुड़े एक टेरर फंडिंग मामले में गिरफ्तार अलगाववादी नेता नईम अहमद खान की जमानत याचिका खारिज कर दी।
नईम अहमद खान को 24 जुलाई 2017 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह न्यायिक हिरासत में हैं। उन्होंने निचली अदालत के जमानत से इनकार करने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, यह कहते हुए कि मुकदमे में देरी हो रही है और उनके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। हालांकि, कोर्ट ने कहा, “जहां एक तरफ अंडरट्रायल व्यक्ति के त्वरित न्याय का अधिकार महत्वपूर्ण है, वहीं आतंकवाद जैसे गंभीर आरोप, देश की एकता को अस्थिर करने की मंशा और जनता में भय फैलाने के प्रयास, लंबी हिरासत के तर्क से अधिक महत्वपूर्ण हैं।”
यह मामला 2017 में कड़े गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत दर्ज किया गया था। अभियोजन पक्ष का आरोप है कि खान जैसे अलगाववादी नेताओं ने जम्मू-कश्मीर में हिंसा भड़काने और तनावपूर्ण माहौल तैयार कर अलगाववादी एजेंडा को बढ़ावा देने की साजिश रची थी।
अदालत ने यह भी पाया कि खान हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के एक सक्रिय सदस्य थे और भारत विरोधी रैलियों व प्रदर्शनों में उनकी भागीदारी अहम रही है। निर्णय में यह भी कहा गया कि हुर्रियत नेतृत्व, पाकिस्तानी संस्थाओं और आतंकवाद को समर्थन देने वाली फंडिंग चैनलों के बीच संबंधों के पर्याप्त संकेत हैं।
कोर्ट ने आदेश में लिखा, “प्रथम दृष्टया साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि खान केवल सहभागी नहीं थे, बल्कि जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने के उद्देश्य से किए गए आतंकवादी कृत्यों की योजना और क्रियान्वयन में एक प्रमुख साजिशकर्ता थे।”