दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में हांगकांग-स्थित भारतीय व्यवसायी अमृत पाल सिंह को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गंभीर आर्थिक अपराध में जांच से पहले दी गई राहत न केवल जांच में बाधा उत्पन्न करेगी, बल्कि धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के उद्देश्यों को भी विफल कर देगी।
न्यायमूर्ति रविंदर दूडेजा ने अपने विस्तृत आदेश में कहा कि लगभग ₹20.75 करोड़ की कथित मनी लॉन्ड्रिंग में आरोपी की भूमिका स्पष्ट करने के लिए हिरासत में पूछताछ आवश्यक हो सकती है। यह राशि “आयात” के नाम पर फर्जी विदेशी लेन-देन के जरिए भारत की शेल कंपनियों से बाहर भेजी गई बताई जा रही है।
सिंह, जो ब्रोवे ग्रुप लिमिटेड के निदेशक हैं, पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने आरोप लगाया है कि वह 2.88 मिलियन अमेरिकी डॉलर की विदेश भेजी गई राशि के लाभार्थी हैं, जो बिना किसी वास्तविक व्यापारिक लेन-देन के भेजी गई थी।

अदालत ने कहा, “समय से पहले दी गई जमानत जांच को बाधित करेगी और PMLA के वैधानिक उद्देश्यों से समझौता करेगी।” न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि जटिल वित्तीय अपराधों की जांच में अभियुक्त का सहयोग अत्यंत आवश्यक होता है।
अदालत ने यह भी ध्यान दिया कि सिंह ने बार-बार समन मिलने के बावजूद जांच एजेंसियों के समक्ष पेश होने से परहेज किया। “उनकी अनुपस्थिति और जांच से बचने की प्रवृत्ति उनकी असहयोगात्मक मंशा को दर्शाती है… उन्होंने समन मिलने से इनकार नहीं किया, फिर भी असंगत कारणों से पेश नहीं हुए,” अदालत ने कहा।
न्यायालय ने यह भी कहा कि संबंधित कंपनी के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही अभी प्रारंभिक चरण में है और इस समय संरक्षण देना जांच के लिए प्रतिकूल होगा।