दिल्ली हाईकोर्ट ने हांगकांग निवासी भारतीय व्यवसायी अमृत पाल सिंह को ₹20.75 करोड़ के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि समय से पहले दी गई जमानत न केवल जांच को बाधित करती है, बल्कि धन शोधन निरोधक कानून (PMLA) के विधायी उद्देश्यों को भी कमजोर करती है।
न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा ने 1 जुलाई को पारित आदेश में सिंह की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उनकी भूमिका की सघन जांच के लिए हिरासत में पूछताछ आवश्यक हो सकती है। उन्होंने कहा, “समय से पहले जमानत देना जांच में बाधा बनेगा और पीएमएलए के कानूनी उद्देश्य को कमजोर करेगा।”
सिंह, जो ब्रॉवे ग्रुप लिमिटेड के निदेशक हैं, पर आरोप है कि उन्होंने भारतीय शेल कंपनियों के जरिए नकली आयात लेन-देन के बहाने करीब 2.88 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग ₹20.75 करोड़) की विदेशों में फर्जी रेमिटेंस प्राप्त की। प्रवर्तन निदेशालय (ED) के अनुसार, इन लेन-देन का कोई वास्तविक व्यापारिक उद्देश्य नहीं था और यह पूरी योजना धन शोधन के लिए बनाई गई थी।

अदालत ने यह भी कहा कि सिंह की जांच में सहयोग न करना उनके खिलाफ गया। आदेश में उल्लेख किया गया कि ईडी के बार-बार समन भेजने के बावजूद उन्होंने उपस्थिति दर्ज नहीं कराई और टालमटोल करने वाले “अवांछनीय बहाने” दिए। अदालत ने कहा, “समन का जवाब न देना और जांच से बचना यह दर्शाता है कि याचिकाकर्ता जांच में सहयोग देने को लेकर ईमानदार नहीं हैं।”
इसके अतिरिक्त, अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि कंपनी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही अभी प्रारंभिक चरण में है, इसलिए जांच में किसी भी प्रकार की बाधा उचित नहीं है।