दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी में अवैध बोरवेल्स के जरिए पानी के दोहन को लेकर कड़ी टिप्पणी करते हुए इसे “किसी पाप से कम नहीं” बताया है और ऐसी गतिविधियों पर सख्त रोक लगाने के लिए ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया है। अदालत ने चेतावनी दी कि अगर समय रहते इसे नहीं रोका गया तो दिल्ली को भी जोहान्सबर्ग जैसे जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
9 अप्रैल को मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने अवैध बोरवेल्स के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों पर गंभीर चिंता जताई।
पीठ ने टिप्पणी की, “क्या आपको पता है जोहान्सबर्ग में क्या हुआ था? कुछ साल पहले वहां कई महीनों तक पानी नहीं था। वहां भयंकर जल संकट आया था। क्या आप चाहते हैं कि दिल्ली में भी वही स्थिति आ जाए?”
अदालत अधिवक्ता सुनील कुमार शर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि रोशनारा स्थित गोयनका रोड पर एक निर्माण स्थल पर कई अवैध बोरवेल्स चल रहे हैं। याचिकाकर्ता ने बताया कि एक आरटीआई के जवाब में नगर निगम (MCD) और दरीयागंज के उप-जिलाधिकारी (SDM) द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों में अंतर पाया गया।
आरटीआई के अनुसार, MCD ने छह बोरवेल्स की जानकारी दी, जबकि SDM ने तीन बोरवेल्स की जानकारी दी, जिन्हें सील कर दिया गया है। इस पर अदालत ने MCD, दिल्ली जल बोर्ड (DJB) और स्थानीय पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों की एक संयुक्त टीम द्वारा मौके का सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया।
न्यायालय ने कहा, “जल स्तर में हो रही लगातार गिरावट को देखते हुए, हम निर्देश देते हैं कि संबंधित इमारत का सर्वेक्षण एक संयुक्त टीम द्वारा किया जाए, जिसमें MCD आयुक्त, DJB के सीईओ द्वारा नामित अधिकारी और संबंधित थाना प्रभारी शामिल हों।”
टीम को 10 दिनों के भीतर सर्वेक्षण कर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि सर्वेक्षण के दौरान कोई अवैध रूप से चालू बोरवेल पाया जाता है तो उस पर तुरंत कार्रवाई की जाए। इसके अलावा, यदि पहले कोई अवैध बोरवेल संचालित हुआ है तो उसकी संख्या और संचालन की अवधि भी रिपोर्ट में शामिल की जाए।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि रिपोर्ट के आधार पर भवन मालिकों पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति का आकलन कर उसे लागू किया जा सकता है। मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को निर्धारित की गई है।