दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी चॉपर घोटाले के आरोपी और कथित बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल जेम्स की उस याचिका को उसके मौजूदा रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जिसमें उन्होंने भारत-यूएई प्रत्यर्पण संधि के एक प्रावधान को चुनौती दी थी। कोर्ट ने उन्हें याचिका वापस लेने और नई, उपयुक्त प्रार्थना-पत्रों के साथ दोबारा दायर करने की छूट दी।
मिशेल ने 1999 की भारत-यूएई प्रत्यर्पण संधि के अनुच्छेद 17 को चुनौती दी थी। यह प्रावधान प्रत्यर्पण कराने वाले देश (यहां भारत) को केवल उसी अपराध में नहीं, बल्कि उससे जुड़े हुए अपराधों में भी अभियोजन चलाने की अनुमति देता है।
उनके वकील का तर्क था कि प्रत्यर्पित व्यक्ति पर केवल उन्हीं आरोपों में मुकदमा चलाया जा सकता है, जिनके आधार पर उसका प्रत्यर्पण हुआ है, अन्य “संलग्न अपराधों” में नहीं।
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा कि याचिका केवल एक ‘घोषणा’ मांगती है, जबकि कोई ठोस राहत नहीं मांगी गई है, इसलिए इसे मौजूदा रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा:
- “कोई परिणामकारी राहत मांगी ही नहीं गई है। केवल घोषणा क्यों दें? बेहतर याचिका दायर कीजिए।”
- “घोषणा तभी दी जा सकती है जब कोई कारण-कार्रवाई हो। केवल घोषणा नहीं दी जा सकती।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह संधि संसद द्वारा पारित कोई कानून नहीं है, इसलिए इसे अल्ट्रा वायर्स घोषित नहीं किया जा सकता।
पीठ ने टिप्पणी की, “यह एक प्रस्तावित बिल की तरह है और आप हमें इसे अल्ट्रा वायर्स घोषित करने को कह रहे हैं। कानून को अल्ट्रा वायर्स घोषित किया जा सकता है, प्रस्तावित बिल को नहीं।”
इसके बाद मिशेल के वकील ने याचिका वापस ले ली और नई याचिका दायर करने की अनुमति मांगी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
मिशेल को दिसंबर 2018 में दुबई से प्रत्यर्पित किया गया था। भारत पहुंचने पर उन्हें सीबीआई और ईडी ने गिरफ्तार किया।
वे इस मामले में कथित तीन बिचौलियों में से एक हैं। अन्य दो हैं — गुइडो हास्के और कार्लो जेरोसा।
सीबीआई के आरोपपत्र में कहा गया है कि 8 फरवरी 2010 को वीवीआईपी हेलिकॉप्टरों की 556.262 मिलियन यूरो की खरीद से भारत को 398.21 मिलियन यूरो (लगभग ₹2,666 करोड़) का नुकसान हुआ।
ईडी के जून 2016 के आरोपपत्र के अनुसार मिशेल ने अगस्ता वेस्टलैंड से 30 मिलियन यूरो (लगभग ₹225 करोड़) प्राप्त किए थे।




