दिल्ली हाईकोर्ट ने ₹641 करोड़ के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में तीन आरोपियों को जमानत दे दी है और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को उसकी जांच प्रक्रिया पर फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि एजेंसी का रवैया “स्पष्ट रूप से मनमाना” प्रतीत होता है।
न्यायमूर्ति अमित महाजन ने अपने 26 सितंबर के आदेश में आरोपी विपिन यादव, अजय और राकेश करवा को जमानत प्रदान की। अदालत ने कहा कि जब ईडी ने ऐसे आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया है जिसका कथित तौर पर इससे बड़ा रोल है और यहां तक कि उस व्यक्ति को भी आरोपी नहीं बनाया जिसने कथित तौर पर ‘म्यूल अकाउंट’ की व्यवस्था कराई थी, तो ऐसे में आवेदकों को समानता के आधार पर राहत से वंचित नहीं किया जा सकता।
मामला उन आरोपों से जुड़ा है जिनमें कहा गया कि आरोपियों ने फर्जी निवेश योजनाओं और झूठे रोजगार के वादों के जरिए सैकड़ों लोगों को ठगा और भारी-भरकम रकम कई खातों के जरिए इधर-उधर की। सीबीआई के अनुसार, आरोपियों ने अन्य लोगों के साथ मिलकर 12 बैंक खातों का संचालन और नियंत्रण किया था, जिनके खिलाफ राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर 16 शिकायतें दर्ज हुई थीं।

ईडी की पहली अभियोजन शिकायत में 76 गवाहों को शामिल किया गया है, जबकि पूरक शिकायत में 35 और गवाहों को सूचीबद्ध किया गया है। अदालत ने कहा कि इतने गवाहों के चलते मुकदमे का जल्द निष्पादन होना “अत्यंत असंभव” है, खासकर जब अजय और विपिन को नवंबर 2024 में और राकेश को जनवरी 2025 में गिरफ्तार किया गया था।
अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि आधारभूत अपराध की जांच, जो सीबीआई कर रही है, अभी पूरी नहीं हुई है। अदालत ने यह भी माना कि आवेदकों की भूमिका, ईडी के ही अनुसार, मुख्य आरोपी रोहित अग्रवाल से अधिक गंभीर नहीं थी, क्योंकि अधिकांश धनराशि उसके पास से आई थी।
इस आदेश के साथ, हाईकोर्ट ने न केवल आरोपियों को राहत दी है बल्कि जांच एजेंसियों की चुनिंदा कार्रवाई पर भी सख्त संदेश दिया है।