एक अनोखी कानूनी स्थिति में, भारत का सुप्रीम कोर्ट — जो आमतौर पर देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है — हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष एक ‘साधारण वादी’ के रूप में पेश हुआ। मामला सुप्रीम कोर्ट परिसर के प्रस्तावित विस्तार के लिए चिन्हित भूमि पर मौजूद 26 वृक्षों के प्रत्यारोपण से जुड़ा था।
कुछ सप्ताह पहले, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख करते हुए इन वृक्षों के प्रत्यारोपण की अनुमति मांगी थी, क्योंकि बिना अनुमति इन्हें काटना कई पर्यावरणीय कानूनों के तहत प्रतिबंधित है। यह पहल सुप्रीम कोर्ट की इस प्रतिबद्धता को दर्शाती है कि वह आंतरिक परियोजनाओं के लिए भी विधिसम्मत प्रक्रिया का पालन करता है, जिससे भारतीय न्यायिक प्रणाली की गरिमा और पारदर्शिता सुदृढ़ होती है।
हाल ही में, माननीय न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की एकल पीठ ने इस प्रत्यारोपण परियोजना को मंजूरी दे दी। स्वीकृत योजना के अनुसार, 16 वृक्षों को गेट ए और बी के बीच स्थित बगीचे की परिधि पर प्रत्यारोपित किया जाएगा, जबकि शेष 10 वृक्षों को प्रशासनिक भवन परिसर के कोने, गेट नंबर 1 के पास स्थानांतरित किया जाएगा।

यह विस्तार परियोजना नए कोर्टरूम्स के निर्माण की योजना का हिस्सा है, जिनमें एक विशेष संविधान पीठ (कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट) भी शामिल होगी। इसके साथ-साथ, न्यायाधीशों के लिए बेहतर चैंबर्स, और वकीलों व वादकारियों के लिए उन्नत सुविधाओं का भी प्रावधान किया गया है। सुप्रीम कोर्ट प्रोजेक्ट डिवीजन (CPWD) की ओर से अधिवक्ता सुधीर मिश्रा ने बताया कि इस परियोजना में सतत और ऊर्जा-कुशल निर्माण पद्धतियों को प्राथमिकता दी गई है।
हिंदुस्तान टाइम्स की चीफ मैनेजिंग एडिटर (एंटरटेनमेंट व लाइफस्टाइल) सोनल कालरा से बातचीत में मिश्रा ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट विस्तार परियोजना राजधानी में वर्षों में की गई सबसे अधिक ऊर्जा-कुशल और सतत पुनर्निर्माण पहलों में से एक है।”
इसके अलावा, मिश्रा ने अदालत को सूचित किया कि वृक्षों की क्षतिपूर्ति के रूप में सुन्दर नर्सरी में पहले ही 26 नए वृक्ष लगाए जा चुके हैं। अदालत ने यह भी पाया कि ट्री ऑफिसर द्वारा जारी किया गया प्रारंभिक आदेश ‘स्पीकिंग ऑर्डर’ नहीं था। अतः ट्री ऑफिसर को निर्देश दिया गया है कि वह दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम (DPTA) और पूर्ववर्ती न्यायिक आदेशों के अनुरूप दो सप्ताह के भीतर एक नया ‘स्पीकिंग ऑर्डर’ जारी करें।