दिल्ली हाईकोर्ट ने थाईलैंड में दर्ज हीरा चोरी के एक मामले में प्रत्यर्पण कार्यवाही का सामना कर रहे भारतीय नागरिक शंकेश मूथा को अग्रिम जमानत दे दी है। यह मामला लगभग ₹3.89 करोड़ के हीरे चोरी से जुड़ा है।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने 1 जुलाई को पारित आदेश में कहा कि मूथा जांच में सहयोग कर रहे हैं और वे हमेशा जांच एजेंसियों के समक्ष उपलब्ध रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि लंबित प्रत्यर्पण अनुरोध को भारत के संवैधानिक और कानूनी ढांचे के भीतर निपटाया जा सकता है, और इससे उनके व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 21) का हनन नहीं होगा।
कोर्ट ने कहा, “सीआरपीसी की धारा 438 केवल एक वैधानिक उपाय नहीं है, बल्कि यह संविधान द्वारा प्रदत्त उस मौलिक अधिकार की प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को केवल न्यायसंगत, निष्पक्ष और विधिसम्मत प्रक्रिया के माध्यम से ही सीमित करने की अनुमति देता है।”

कोर्ट ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि प्रत्यर्पण अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। न्यायमूर्ति नरूला ने कहा, “इस प्रकार की रोक की कोई स्पष्ट व्यवस्था प्रत्यर्पण अधिनियम में नहीं है। यदि ऐसा माना जाए, तो यह न्यायपालिका द्वारा वह सीमा जोड़ने जैसा होगा, जिसे विधायिका ने जानबूझकर नहीं जोड़ा।”
मूथा ने ट्रायल कोर्ट द्वारा उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद हाईकोर्ट का रुख किया था। ट्रायल कोर्ट ने यह याचिका नये भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और प्रत्यर्पण अधिनियम के तहत खारिज की थी। हाईकोर्ट ने पाया कि मूथा ने थाईलैंड में उनके खिलाफ किसी भी आपराधिक मामले की जानकारी न होने की स्पष्ट दलील दी थी। वह आठ वर्षों तक बैंकॉक की कंपनी Flawless Co. Ltd. में काम करने के बाद भारत लौटे थे।
थाईलैंड की उक्त कंपनी ने मूथा पर 2021 में आठ हीरे चुराने का आरोप लगाया था, जिसके बाद साउदर्न बैंकॉक क्रिमिनल कोर्ट ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया और थाई अभियोजन पक्ष ने भारत में प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू की। यह मामला फिलहाल दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में लंबित है।
हाईकोर्ट ने मूथा द्वारा स्वेच्छा से मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने और पासपोर्ट कोर्ट में जमा करने जैसे तथ्यों को ध्यान में रखते हुए माना कि वह न तो फरार होने की मंशा रखते हैं और न ही सबूतों से छेड़छाड़ की आशंका है।
कोर्ट ने कहा, “प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता जांच में सहयोग करने की bona fide मंशा रखता है।” इस आधार पर हाईकोर्ट ने निचली अदालत का आदेश रद्द कर अग्रिम जमानत दे दी, हालांकि यह कुछ शर्तों के अधीन होगी।
अंत में, न्यायमूर्ति नरूला ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रत्यर्पण अधिनियम का उद्देश्य भारत की अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करना है, परंतु यह संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को तब तक नहीं कुचल सकता, जब तक कि ऐसा स्पष्ट रूप से कानून में न कहा गया हो।