दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल ने बीते पांच वर्षों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के केवल 9–10 प्रतिशत बाह्य मरीजों (ओपीडी) और 7–9 प्रतिशत आंतरिक मरीजों (आईपीडी) का ही इलाज किया है, जबकि लीज़ समझौते के तहत अस्पताल को 40% बाह्य और 33% आंतरिक मरीजों का निशुल्क उपचार करना अनिवार्य था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्य बागची की पीठ ने दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य सेवा निदेशालय की महानिदेशक वत्सला अग्रवाल द्वारा दायर हलफनामा रिकॉर्ड में लेते हुए अपोलो अस्पताल (इंद्रप्रस्थ मेडिकल कॉर्पोरेशन लिमिटेड – IMCL) से जवाब मांगा है। इस मामले की अगली सुनवाई दिसंबर के दूसरे सप्ताह में होगी।
सरकार ने कहा कि लीज़ शर्तों के अनुसार अस्पताल को 40 प्रतिशत बाह्य मरीजों और 33 प्रतिशत आंतरिक मरीजों का मुफ्त इलाज करना था, लेकिन रिकॉर्ड की जांच में पाया गया कि अस्पताल ने इस दायित्व का बेहद कम हिस्सा ही निभाया।
सुप्रीम कोर्ट के 25 मार्च के आदेश के अनुसार गठित विशेषज्ञ समिति ने मई और जून 2025 के दौरान तीन बार अस्पताल का दौरा किया। समिति ने पाया कि गरीब मरीजों को पूरी तरह मुफ्त इलाज नहीं दिया जा रहा है — उनसे दवाओं और उपभोग्य सामग्रियों के लिए वास्तविक लागत वसूली जा रही है या उन्हें बाहर से खरीदने को कहा जाता है। जांच सेवाओं में उपयोग की गई वस्तुओं की लागत का 20 प्रतिशत तक भी मरीजों से वसूला जा रहा है।
दिल्ली सरकार ने कोर्ट को बताया कि अस्पताल की जमीन की लीज़ 31 जुलाई 2023 को समाप्त हो चुकी है और अब तक नवीनीकृत नहीं की गई है। IMCL ने 9 मई 2025 को 30 वर्षों के लिए लीज़ नवीनीकरण का प्रस्ताव दिया है।
सरकार ने कहा कि यह प्रस्ताव तभी विचाराधीन होगा जब कंपनी की गरीब मरीजों के प्रति जिम्मेदारी और अग्रवाल समिति की रिपोर्ट के निष्कर्षों की समग्र समीक्षा कर ली जाएगी।
सरकार ने यह भी बताया कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस मामले को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया है और आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय, दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) तथा दिल्ली सरकार को उचित कार्रवाई करने को कहा है।
यह विवाद 22 सितंबर 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश से जुड़ा है, जिसमें अदालत ने पाया था कि अपोलो अस्पताल ने गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज देने की लीज़ शर्तों का “मनमाने ढंग से उल्लंघन” किया है। हाईकोर्ट ने अस्पताल को निर्देश दिया था कि वह एक-तिहाई (लगभग 200) बिस्तर गरीब मरीजों के लिए मुफ्त उपचार हेतु आरक्षित रखे और 40 प्रतिशत बाह्य मरीजों को भी मुफ्त इलाज की सुविधा दे।
सुप्रीम कोर्ट ने 25 मार्च 2025 के अपने आदेश में कड़ा रुख अपनाते हुए कहा था कि यदि अपोलो अस्पताल गरीबों को मुफ्त इलाज उपलब्ध नहीं कराता है तो वह ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) को अस्पताल का संचालन सौंपने पर विचार करेगा। अदालत ने यह भी कहा था कि दिल्ली के पॉश इलाके में 15 एकड़ जमीन पर बने इस अस्पताल को ₹1 की सांकेतिक लीज़ पर ‘नो प्रॉफिट, नो लॉस’ के आधार पर चलाया जाना था, लेकिन अब यह एक व्यावसायिक संस्थान बन गया है जहां गरीबों का इलाज संभव नहीं है।
मामले की अगली सुनवाई दिसंबर में होगी, जब अपोलो अस्पताल की ओर से दाखिल जवाब पर विचार किया जाएगा।




